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। १०२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
• वासकः। वासको वासिका वासा भिषङ्माता च सिंहिका८९ सिंहास्यो वाजिदंतः स्यादाटरूपक इत्यपि । अटरूपो वृषनामा सिंहपर्णश्च स स्मृतः ॥ ९ ॥ वासको वातकृत्स्वर्यः कफपित्तास्रनाशनः । तिक्तस्तुवरको हृयो लघुः शीतस्तृडर्तिहत् ॥ ९ ॥ श्वासकासज्वरच्छर्दिमेहकुष्ठक्षयापहः। वासक, वासिका, वासा, भिषङ्माता, सिंहिका, सिंहास्य, वाजिदन्त पाटरषक, अटरूष, वृष, सिंहपर्ण यह बांसेके नाम हैं।
बांसा-वातकारक, स्वरकारक, कफ, पित्त और रुधिर विकारको नाश करनेवाला, तिक्त, कषाय, हृदयको हितकर, हल्का, शीतन, प्यास और पीडाको हरनेवाला तथा श्वास, कास, ज्वर, वमन, प्रमेह, कुष्ठ, क्षय नको नष्ट करने वाला है और रक्तपित्त ( नकशीर) आदिका सिद्ध भौषध है ॥ ८९-९१ ॥
पर्पटः। पपटो वरतिक्तश्च स्मृतः पर्पटकश्च सः ॥ ९२ ॥ कथितः पांशुपर्यायस्तथा कवचनामकः। पर्पटो हंति पित्तास्त्रभ्रमतृष्णाकफज्वरान् ॥ ९३ ॥ संग्राही शीतलस्तितो दाहनुद्वातलो लघुः। पर्पट, वरतिक्त, पपर्टक तथा पांशु और कवचके पर्यायवाचक शब्द पित्तपापडेके नाम हैं। इसे फारसीमें शाहतरा और अंग्रेजीमें Justacia Procarabens कहते हैं। . पित्तपापड़ा-ग्राही, शीतल, तिक्त, हलका, वातकारक तथा दाह, पित्त, रक्तविकार, भ्रम,प्यास, कफ और ज्वर इनका नाश करता है ॥९२।। ९३ ॥
Aho! Shrutgyanam.