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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.
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सेहुडभेदशातला ।
शातला सप्तला सारविमला विला च सा ॥ ७९ ॥ तथा निगदिता भूरिफेना कर्मकपेत्यपि । शातला कटुका पाके वातला शीतला लघुः ॥ ८० ॥ तिक्ता शोथकफानाहपित्तोदावर्तरक्तजित् ।
शातला, सप्तला, सारविमला, विदला, भूरिफेना तथा कर्म्मकषा यह शातला के नाम हैं । इसे फारसी में एषण कहते हैं ।
शातला - पाक में कटु, वातवर्द्धक, शीतल, हल्की, तिक्त तथा शोथ, कफ, आनाह (बारा), पित्त, उदावर्त्त और रक्त विकारको जीतती है ॥७९॥८० कलिहारी |
कलिहारी तु इलिनी लांगली शुक्लपुष्प्यपि ॥ ८१ ॥ विशल्याग्निशिखानंता वह्निवत्रा च गर्भनुत् । कलिहारी सरा कुष्ठशोफाशव्रणशूलजित ॥ ८२ ॥ सक्षारा श्लेष्मजित्तिक्ता कटुका तुवराणि च । तीक्ष्णोष्णकृमिलघ्वी पित्तला गर्भपातिनी ॥ ८३ ॥
कलिहारी, हलिनी, लाङ्गली, शुक्लपुष्पी, विशल्या, अग्निशिखा, अनंता वह्निवत्रा और गर्भनुत यह कलिहारीके नाम हैं। इसको अंग्रेजी में Wolfsbone कहते हैं । इसको शिमला प्रान्तमें नगरौडी कहते हैं ।
कलिहारी - दस्तावर, कुष्ठ, शोफ, अर्श, व्रण और शूलको जीतनेवाली' है । क्षार, कफनाशक, तिक्त, कटु, कषाय, तीक्ष्ण, उष्ण, कृमिनाशक, हल्की, पित्तकारक और गर्भको गिरानेवाली है ॥ ८१-८३ ॥
श्वेतरक्त करवीरौ । करवीरः श्वेतपुष्पः शतकुम्भोऽश्वमारकः । द्वितीयो रक्तपुष्पश्च चंडांतो लगुडस्तथा ॥ ८४ ॥