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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (८९) पाठला-कषाय, तिक्त, अनुष्ण, विदोषनाशक तथा अरुचि, श्वास, ग्रोथ, अश, वमन, हिचकी, प्यास इनको हरनेवाली है। इसका पुष्पकसैला, मधुर, शीतल, हदपको प्रिय, कफ और रक्तविकारको जीतने वाला, पित्त और अतिसारको जीतनेवाला पौर कण्ठको हितकारी है। इसका फल हिचकी, रक्तविकार और पित्तको जीतनेवाला है ॥१९..२२॥
आमिमंथः। अनिमन्थो जया स स्यात् श्रीपर्णी गणकारिका२३ जया जयंती तर्कारी नादेयी वैजयंतिका । अग्निमंथः वयथुनुवीर्योष्णः कफवातहत् ॥२४॥ पांडुनुत् कटुकस्तितस्तुवरो मधुरोऽग्निदः । अग्निमंथ, जय, श्रीपर्णी, गणकारिका, जया, जयंती, तकारी, नादेयी, वैजयंतिका यह अग्निमंथके नाम हैं। इसको हिन्दीमें अर्णो कहते हैं।
अग्निमंथ-सूजनको नष्ट करनेवाला, उरणवीर्य, कफ तथा वातको नष्ट करनेवाला, पाण्डुरोगनाशक, कटु, तिक, कषाय, मधुर तथा अग्निको बढानेवाला॥२३॥२४॥
स्यानाकः।
स्योनाकः शोषणश्च स्यानटकट्वंगटुंटुकः ॥ २५ ॥ मण्डूकपर्णपत्रोणशुकनाशकटुनटाः। दीर्घवृन्तोरलुश्चापि पृथुशिंबः कटंभरः ॥ २६ ॥ स्योनाको दीपनः पाके कटु कस्तुवरो हिमः । ग्राही तितोऽनिलश्लेष्मपित्तकासामनाशनः ॥२७॥ टुंटुकस्य फलं बालं रूक्ष वातकफापहम् ।