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(७४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । लघूष्णं शुक्रलं वये स्वादु व्रणविषापहम् । अलक्ष्मीमुखदौर्गन्ध्याहृत्पाकरसयोः कटु ॥ ८२॥ नख, व्याघ्रनख, व्याघ्रायुध तथा चक्रकारक यह नखके नाम हैं। छोटे मखोंको नखी, हनु और हडविलासिनी कहते हैं। इसे हिन्दी में नख' अथवा नखी, फरसीमें नाखुधिरयाँ तथा अंग्रेजीमें Shell कहते हैं।
नख और नखी दोनों-हलके, गरम, वीर्यवर्धक वर्णको उत्तम करनेवाले, मधुर तथा ग्रह, कफ, वात, रक्तविकार, ज्वर कुष्ट व्रण, विष, अलक्ष्मी, मुखकी दुर्गन्ध इन सबको हरनेवाले हैं तथा पाक और रसमें कटु है ॥ ८०-८२॥
हीबेरम् । बालं ह्रीबेरबरिष्ठोदीच्यं केशांबुनाम् च । बालकं शीतलं खरं लघु दीपनपाचनम् ॥ ८३ । हल्लासारुचिविसर्पहृद्रोगामातिसारजित् । बाल, हीबेर बहिष्ठ, उदीच्य यह पौर केशों तथा जलके सम्पूर्ण नाम हीवेरके नाम हैं। इसको हिन्दीमें सुगंधवाला, फारसी में असारूं तथा अंग्रेजीमें Muricatus कहते हैं।
सुगन्धवाला-शीन, रूक्ष, हलका, दीपन, पाचन तथा हल्लास, परुचि, विसर्प, हृदयके रोग और भामातिसारको दूर करता है । ८३ ।
वीरणम् । स्याद्वीरणं वीरतरं वीरं च बहुमूलकम् ॥ ८४ ॥ वीरणं पाचनं शीतं स्तंभनं लघु तिक्तकम् । मधुरं ज्वरनुवांतिमदजित्कफपित्तहत् ॥ ८५॥ तृष्णास्त्रविषवीसपकृच्छ्रदाहव्रणापहम् । वारण, वीरता,वीर, बहुमूलक यह वीरनके संस्कृत नाम हैं। इसे. हिन्दी में वीरण तृण या पहीयास कहते है।
Ahe serutgyanam