________________
[ ५६ ] "द्वादशस्वथ वर्षाणां, शतेषु विरतेषु च । एकोनेषु महीनाथे, सिद्धाधीशे दिवंगते ।।
( देखो प्रभावक चरित्र पत्र ३९३.
कुमारपाल के गुणानुवाद जैन करें यह तो संगतही है परन्तु जैनेतर लोगांने भी इस भूपालकी कीर्तिके गायन करने में संकोच नही किया । कुमारपाल चरित्र द्वाश्रय जो महाराजा-गायकवाड सरकारकी ओर से प्रगट हुआ है, उसकी प्रस्तावना. में-सद्गत प्रोफेसर-मणिभाई नभुभाई द्विवेदीने लिखा है कि-"कुमारपाल ने जबसें अमारी घोषणा "-( जीवहिंसाबंद) की तबसें यज्ञयागमें भी मांस " बलि देना बन्द हो गया, और यव तथा शालि " होमनेकी चाल शुरु हो गई । लोगांकी जीव " उपर अत्यन्त दया बढी । मांसभोजन इतना" निषिद्ध हो गया कि-सारे हिन्दुस्थान ( बंगाल " -पंजाब-इत्यादि एक, या दूसरे प्रकार से थोडा " बहुत भी मांस हिन्दु कहलानेवाले उपयोगमें " लाते हैं परन्तु गुजरातमें तो उसका गंध भी लग
Aho! Shrutgyanam