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( ३७ ] मार-देवीभी देव गत हो गई । मातापिताके अति असह्य वियोगसें विधुरित मंत्रीरान अल्प नीरस्थ मी. नकी तरह-आकुलव्याकुल हुए हुए दिन गुजार रहे थे कि श्रावण के मेघकी तरह धर्म नीर के वरसानेवाले श्री नयचंद्र मूरिजी ग्रामानुग्राम विचरते हुए मांडल पधारे मंत्री प्रभृति श्रद्धालु लोगोंको मूरि राजका पधारना बडा लाभकारी हुआ कुछ दिनो तकके गुरु महाराज के संयोगसें दोनो भाइयोंका मन स्थिर हो गया । और प्रथमकी तरह वोह धर्म क्रिया प्र. वृत्ति करने लगे।
वस्तुपाल की ललिता देवी और तेजःपाल की अनुपमादेवी स्त्री थी जोकि-निहायत सुरूपा एवं सु. शीलाथी. उन दोनोमें-दान देना-देवगुरुकी भक्ति करनी-धर्माराधन करना और त्रिविधयोगसें अपने अपने प्राणनाथ पतिकी भक्तिका करना-यह अनन्य साधारण और लोकप्रिय गुण थे।
नयचंद्रमूरिजी निमित्तशास्त्रमे बडे ही प्रवीण थे । उन्होने उन भाग्यवानोंका भावि महोदय देख. कर श्री सिद्धाचलनीको यात्रा करने का अर्थात् श्री
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