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[ ८ ]
मलपरे करीने संतोषी || रीझवो वेने ते हजी ॥१०॥ सो प्रेतने जइ पुछीडं || मोछवीं विनय वचनजी ॥ सौ कहे साधुं सांभलो || एणै गिरी रहु निस दिनजी ॥ ११ ॥ स्वामि अ आ भोमिनो । हुं देवरुपी जाणजी || तुम संघनो वडो मानवी | मुझ आपो एक आजी || १२ || पछे संघ सहु निर्भय थइ || पंथे पोहचोरे खेमजी || एह कथन जो नहि मानसी | तो भेटसो केम तुमे नेमजी || १३ || संघ पति रत्न ते सांभली || एहवा तीहां समाचारजी || सहु संघने बइ सारी करी || बोले एम विचारजी ॥ १४ ॥
॥ ढाल 9 मी
( नंद्या म करसो कोइनी पारकीरे ।। ए देशी छे ) धवल शेठ लइ भेटणुं आ देशीमां पण छे ॥ रत्नशेठ कहे संघनेरे ॥ वचन एक अवधारोरे ॥ इण थानके अमे रेशुं एकलारे, तुमे जइ नेम जुहारोरे रन ॥ १ ॥ अथिर कलेवर आज संघनेरे ॥ काम जो ते नहीं आवेरे ॥
तो पछे इणे कीशुं नीप
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