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व दक्षिण पश्चिमको हो ॥ २३ ॥ वास्तुके मध्यमें जिसकी समान भित्तिहों वह घर शुभदायी कहा है. विषम घरमें अर्थात जो एकतरफ लंबा और
एक तरफ न्यून हो उसमें अनेक दोषोंका दाता ऋजुवेध होता है ॥ २४ ॥ ऋजुवेधवाले घरमें महान त्रास होता है इसमें संशय नहीं है और जिस घरके वंशके आगे वंश हो वा आगे बाह्यकी भित्ति हो ॥ २५ ॥ वह वंशवेध जिस घरमें हो उसमें वंशकी हानि होती है जिस घरकी उक्षों (भुजा) का संयोग यूपके अग्रभागमें होजाय अर्थात स्तंभके सन्मुख हो ॥ २६॥ उसको उक्षवेध जाने उसमें विनाश और कलह होता है. जिस वास्त्वन्तरे भित्तिसमं शुभदं तत् प्रकीर्तितम् । विषमे दोपबहुलमृजुवधं प्रजायते॥२४॥ऋजुवेधे महात्रासो जायते नात्र संशयः । वंशाग्रे चान्यवंशः स्यादने वा भित्तिबाह्यगाः ॥२६॥ तद्वंशे वेधयेद्हं वंशहानिः प्रजायते । उक्षयोर्यत्रसंयोगो यूपाग्रेषु प्रजायतें ॥ २६ ॥ उक्षवेध विजानीयाद्विनाशः कलहो भवेत् । पूर्वोत्तरे वास्तुभूमौ विपरीतेऽथ निम्नका ॥ २७॥ उच्चवेधो भवेन्नूनं तद्वेध न शुभप्रदम् । द्वयोगेंहान्तरगतं गृहं तच्छुभदायकम् ॥ २८ ॥ गृहोच्चादद्धसंलग्ने तथा पाराप्रसंस्थितम् । संघातमेलनं यत्र गेह योभित्तिरेकतः ॥२९॥ विधिवश्य शीघ्रमेव मरणं स्वामिनोयोः। पर्वतानिःसृतं चाश्मदन्तवद्भित्तिसम्मुखम् ॥ ३०॥तदन्तवेध
मित्याहुः शोकं रोगं करोति तत् । अधित्यकासु यद्हं यद्गुहं पर्वतादधः ॥३१॥ 0/ वास्तुकी पूर्वोत्तरकी भूमि विपरीत हो वा निम्न (नीची ) हो ॥ २७ ॥ वह उच्चवेध होता है वह शुभदायी नहीं होता है. दो घरोंके अन्त
गत (मध्यमें ) जो घर है वह शुभदायी होता है ॥ २८॥ जिस घरकी ऊँचाईसे आधे भागपर दूसरा घर हो और तैसेही पारके अपभागमें स्थित हो. जिस घरमें दो घरोंकी भित्ति एक स्थानमें हो वह संघातमें होता है ॥ २९ ॥ उन घरों में विधिवशसे शीघ्रही दोनों स्वामियोंका मरण होता है, पर्वतसे निकासा हुआ पत्थर जिसकी भित्तिके संमुख हो ॥ ३०॥ उसको दन्तवेध कहते हैं वह शोक और रोगको करता है।