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________________ वार और शनिवारको प्रवेश न करे कोई आचार्य शनैश्चरकी प्रशंसा करते हैं परंतु उसमें चोरोंका भय होता है ॥ १९ ॥ कुयोग पाप लग्न और चरलग्न और चरलग्नका नवांशक और शुभ कर्ममें जो वर्जित हैं वे इस प्रवेश;भी वर्जित हैं और नन्दातिथिको दक्षिणद्वारमें! और भद्रातिथिको पश्चिमके द्वारमें प्रवेश करे ॥ २० ॥ जयातिथिको उत्तरके द्वारमें और पूर्णा तिथिको पूर्वके द्वारमें प्रवेशको करे और व्याधिका नाशक धनका नाशक धनका दाता बन्धुओंका नाशक ॥ २१ ॥ पुत्रका नाशक शत्रुका नाशक स्वीका नाशक प्राणका नाशक कुयोगे पापलग्ने वा चरलग्ने चरांशके । शुभकर्मणि ये वास्ते वास्मिन् प्रवेशने । नन्दायां दक्षिणद्वारं भद्रायां पश्चिमेन तु ॥२०॥जयायामुत्तरद्धारं पूर्णायां पूर्वमाविशेत् । व्याधिहा धनहा चैव वित्तदो बन्धुनाशकृत् ॥२१॥ पुत्रहा शत्रुहा स्त्रीघ्रः प्राणहा पिटकप्रदः । सिद्धिदो धनदश्चैव भयकृजन्मराशितः ॥२२॥ लग्नस्थक्रमतो राशिजन्मलग्नात्प्रवेशने । लग्नं सौम्या वितं कार्य न तु क्रूरैः कदाचन ॥२३॥ निन्दिता अपि लग्नांशाश्चरराशिगता यदि । शुभाशसंयुताः कार्याः कर्तृभोपचय M स्थिताः ॥२४॥ भूयो यात्रा भवेन्मेषे नाशं कर्कटकेऽपि वा। व्याधि तुलाधरे लग्ने मकरे धान्यनाशनम् ॥ २५॥ 10 और पिटक (पटियारी) का दाता सिद्धिका दाता धनका दाता भयकारक ये बारह प्रकारके पूर्वोक्त फल जन्मकी राशिसे होते हैं ॥२२॥ लग्नमें स्थित क्रमसे प्रवेशमें जन्मलग्नसे राशि लेनी और लग्नभी सौम्यग्रहोंसे युक्त देना और क्रूर ग्रहोंमे युक्त लग्नको प्रवेशमें कदाचितभी था न ग्रहण करना ॥ २३ ॥ निंदितभी लग्न और नवांशक यदि चरराशिकभी हों और शुभग्रहके नाशकसे युक्त होंय तो वह प्रवे के शमें ग्रहण करने जो वे प्रवेशकर्ताकी राशिके उपचय भवन में स्थित हों ॥२४॥ मेष लग्नमें प्रवेश करे तो दुबारा फिर यात्रा होती है कर्क
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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