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शतक
॥२५॥
देवागं अप्पमचद्वार मे भांग ठार, अप्प्रमाभयोग्गाओ देवाडगं च मोनूण सेसाओ अट्ठावन्नं पगईओ अपुण्यकरणो बन्ध, ताव जा अपुष्यकरणद्वार संखेजड़मो भागो ति. ॥ ४७ ॥
दो तीस चत्तारि य, भागे भागे संखसन्नाए । चरमे य जहासंखं, अपुव्वकरणंनिया होंति ॥ ४८ ॥
व्याख्या- 'दो ती दोषि अपुव्यकरणया संखेन मे भागे गए णिद्दापयलाणं बन्धो वोच्छिजर, पुन्बुता अजग्गा णिद्दादुगसहियाओ मांणं संसाओं छप्पन्नं पगडीओ अपुव्यकरणों बन्ध, ताव जाव अपुव्यमद्धार संखेज्जभागा गतति । तीसं ति अपुव्यकरणद्धार संखेजभागसु गएसु नीसाए कम्मपगईणं बन्धो वोच्छिजर, संजहा-देव गईपंचेदि य जाइवेउब्वियआहारगतेयकग्मइगसरीरसम चउरंस वेउब्धियाहारग अगोवं गव गंधरस फासदेवाणुपुब्बिभ गुरुडउवधायपराधायउस्सास पसत्यविहाय गहत सबा परपजत्तकपत्तेर्याीथर सुभसुभगसुसर आए जण म्माणतित्थकरमिति । देवगइबन्धजग्गाओ पयाओ तीसं पगडीओ पुत्ताओं अयोग्गसहियाओ मांतून मेसाओ छन्दी पगडीओ अपुव्यकरणों अंतिमे भागे बन्धर, ताव जाव चरिसमओ ति ।' चारि यत्ति अपुव्यकरणस्स चरिमसमए चउन्हं पगईणं बन्धो वोच्छिजर, तंजहा -हासरह भयदुगुच्छति । 'दो तीसं गाहात्थो इमो दोपगईओ तीस पराईआं चत्तारि पगईओ अनुब्धकरणद्वार 'भागे भागेसु संखसन्नाएं त्ति संखेजरमे भागे गए संखेज्जइमे भागेषु गतेषु ति भणियं मधर । ' चरिमे य' चरिमसमए य जहासंखं अपुब्वकरणंमि बोच्छिजं ति । पर तिनि विगप्पा अपुत्रकरणंमि भवंति । एप चत्तारि कुत्ता अप्पाओगसहिए मोत्तृण सेसाओ बाबीसं पगईओ अणियट्टी घर, नाव जाव अणिपट्टिद्धार संखेज भागा गया, एक्को भागो सेसो ति ॥ ४८ ॥
संखेज्जइमे सेसे, आढत्ता बायरस्स चरितो । पंचसु एकेकता, सुहुमंता सोलस हवंति ॥ ४९ ॥
चूणिः
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