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________________ यतिल ० ॥ ७६ ॥ | ॥ १७६ ॥ कखिदोसंमिश्रा शिविके एगाइगुणुज्किटं वि होइ गुरू । मूलगुणसंपया ज‍ क लिखा होइ जं जणां ॥ १७५ ॥ गुरुगुणरहि वि इहं दधो मूलगुणवित्तो जो । न उ गुण मित्तविहृणोत्ति चंगरुड़ो उदाहरणं ॥ १७८ ॥ मूजगुणसंजु अस्स य गुरुणो वि य उवसंपया जुत्ता । दोसलवे विश्रा सिरका तस्सुचित्रा एवरि जं जणिचं ॥ १७९ ॥ मूलगुणसंपत्तो न दोसलवजोग इमो हेर्छ । मदुरोवकम पुण पवतिछावो जह्रुतंमि ॥ १४० ॥ पत्तो सुसीससद्दो एव कुतेण पंथगेणावि । गाढप्पमाइणो विदु सेलगसूरिस्स सीसेा ॥ १०१ ॥ नए सेलगसेवाए जड़ स1⁄2 सेलगस्स सीसतं । तं मुत्तूण गयाणं ता पंचसयाण तमखऊं ॥ १८२ ॥ तस्स य मूलगुणेसु संतेसुं गमणाणारं । तेसिं तस्स य जुतिरकमाइ कह होंति वेहम्मा ॥ १०३ ॥ भूलगुणसंजुचस्स य दोसे वि श्रवणं वक्कमिठं । धम्मरयमि जणि पंथगणायंति चिंत भिणं ॥ १०४ ॥ जन्न पंचसयाणं चरणं तुलं च पंचगस्सावि । श्रदिगिच्च व गुरुरायं विसेसिउं पंथ तहवि ||१८|| शियमेण चरणजावा पंचसयाणं पि जइ वि गुरुराउं । तहविष्ठा परिणामवसा उक्किो पंथगस्सेसो ॥ १०६ ॥ य ए डुषेयं जं गोसालोवसग्गिए वादे । श्रक्षाविरका सुर्ज बाढं रत्तो सुपरको ॥ १८७ ॥ पणुरते तहा रुन्नं सीहेा मालुखाकडे । तनावपरिणयप्पा पहुणा सद्दावि छ इमो ॥ १०८ ॥ कस्स वि कत्थई पीई धम्मोवायंमि दढयरा होइ । एय| कुशावाहा मूखावहा एवं ॥ १८९ ॥ श्रहिं पंथगस्स उ गुरुरागुक रिसर्ज व संगारो । गुरुसेवाइ स रतो असे अजय विहारे ॥ १० ॥ सेलयमा पुश्चित्ता वगवित्ता पंथगं च अणगारं । गुरुवेयावञ्चकरं विहरंताणं पि को दोसो ॥ १७१ ॥ १ संतेसु विदुण्ड्गमणठाणाई | समुच्चय. ॥ ७६ ॥
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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