SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतिल ० ।। ७५ ।। तीए श्र परिच्चाए 5ण्ड वि लोगा चार्ज ति ॥ १४४ ॥ नए एवं कह ऋषि दिघंतो गामनोइनरवणो । जन्नइ अपत्तविसए गुरुणो जग्गा न जावाणा ॥ १४५ ॥ तित्थयरवयणकरणे आयरिश्राएं पए कयं होइ । एत्तोश्चिय जशिअ मि | श्यरेारभावसंवेहा ॥ १४६ ॥ जिएकप्पापवित्ती गुरुश्राणाए विरोहिणी न जहा । तह कअंतरगमणे विसेसकजस्स | परिबंधो ॥ १४७ ॥ जावस्स हु रिकेवे जिएगुरुणा होइ तुम्ह्नत्तं । सरिसं पासा जणियं महाणिसी इंमि फुरुमेयं ॥ १४८ ॥ गुणपुस्स वि वृत्तो गोश्रमणापण गुरुकुले वासो । विण्यसुदंसणरागा किमंग पुए वच्चमि रस्स ॥ १४९ ॥ एय मोत्तबो एसो कुलवणाए समयज थिए । बजाजावे वि इह संवेगो देसाइहिं ॥ १५० ॥ खंतागुणुक रिसो सुविहियसंगेण बंजगुती य । गुरुवेयावच्चेण य होइ महाशिराजाहो ॥ १५१ ॥ मूढो इमस्स चाए एएहिं गुणेहिं वंचित होइ । एगागिविहारेण य एस्सइ जणि च उहंमि ॥ १९२॥ जड़ सागरंमि मीणा संखोहं सागरस्स असहंता । निंति तर्ज सुहकामी निग्गयमित्ता विएस्संति ॥ १५३ ॥ एवं गन्नुसमुद्दे सारणमाईहिं चोइया संता । निंति तर्ज सुहकामी मीणा व | जहा विणस्संति ॥ १९४ ॥ जाि श्रायारंमि वि पुछा दोसेा णावरियन्ति । तद्दिदीए इच्चाश्वयण गुरुकुलं गरु ॥ १५५ ॥ जं पुण नया खनिजा इच्चाईसुत्तमेगचारिते । तं पुण विसेसविसयं सुनिबुद्धिहि दध्वं ॥ १५६ ॥ पार्व विवजयंतो कामेसु तहा असजमाणो छ । तत्थुत्तो एसो पुए गीयत्यो चेव संजवइ ॥ १५७ ॥ णागी अन्नाणी किं काहिचाश्वय ो । वियत्तस्स विहारो अविय सिसिको फुरुं समए ॥ १५८ ॥ गीयत्थो का विहारो बीर्थं गीयत्मनी - सि नणि । एतो तर विहारो नाथुन्ना जिणवरेहिं ॥ १५९ ॥ एगागियस्स दोसा इत्थी साणे तहेव पकिणीए । समुच्चय. ॥ ७५ ॥
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy