________________
म०प०
॥ ४९ ॥
जिल वयण
गया
मे ॥ दोन मइ जाए जोग मल्लीला ॥
जद तं देस काले ॥ श्रमूढ सत्तो चयइ देहं ॥ ८ ॥
जिन वचनने अनुसरती शुभ ध्यान अने शुभ योगमां लीन एवी मारी मती थाओ; जेम ते देश कालने वि पंडित को आत्मा देह याग करे ! ९८ ॥
जाहे दो पत्तो ॥ जिरावर वयला रहिन अलाइतो || तो इंदिय चोरा || करंति तत्र संजम विलोमं ॥ एए ॥
जिनवर वचनथी रहित एवो अने क्रियाने विषे आळसु एवो कोइ मुनि ज्यारे प्रमादी थाय सारे (तेना) इंद्रियोरुपी चोरो तप अने संयमनो नाश करे छे ॥ ९९ ॥
जिe are मग म || जं वेलं होइ संवर पवि ॥ अग्गी वासहीन ॥ समूल मालं महइ कंमं ॥ १०० ॥
जिन वचनने विषे अनुसरती मति छे जेनी एवो पुरुष, जे वेला संवरमां पेटेलो होय ते वेला वायरा सहित अग्निनी पेठे मुल अने डाला सहित कर्मने बाळी मूके ॥ १०० ॥
जद मंद वान सदिन || अग्गी रुरके वि हरि तह पुरिसकार सहिन | नाणं कम्मं खयं ने३
॥
वा संके ॥
१०१ ॥
पयन्नो.
।।। ४२ ।।