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________________ षयरो. हस्स शिपिA5004551ST आरा पंच परमिकसमरण // परायणो पाविकण पंचतं / / // 7 // पत्नो पंचम कप्पंमि ॥रायसीहो सुरिंदत्तं // 30 // पंच परमेष्टी स्मरणमा तत्पर थएलो एवो राजसिंह कुमार मरण पामीने पांचमा देवलोक्ने विषे इंद्रपजाणाने पामतो हो // 68 / / तप्पत्ती रयणवइ॥तदेव धारादिन तकप्पे॥ सामाणियत्नं पत्ता // तक चुभा निवइस्संति // ए॥ तेनी स्त्री रत्नवती तेनीज पेठे नवकारने आराधीने देवलोकने विषे इंद्रना सामानिक देवपणाने पामती हवी अने त्यांची चवीने बने मोक्षे जशे // 69 // सिरि सोमसूरि रश्यं / / पङताराहणं पसमजणणं॥ जे प्रणसरति सम्मं // लहंति ते सासयं गणं // 7 // श्री सोममारए रचेली छेवटनी आराधना ते उपशमने उत्पन्न करनार छ माटे जेओ सम्यक प्रकारे | आदरशे तेओ शाश्वता स्थानकने (मोसने) पामशे // 7 // // इति श्री आराधना प्रकरणं संपूर्ण.॥ F+RC5HEस HESGSecemeSPASSFES Clin77 //
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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