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[ द्रव्यानुभव- रत्नाकर।
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-छटे समय धानु भंजे, सातवें समय कपाट भंजे, आठवें समयमें 'दण्ड संहार करके खण्ड २ हो जाय । इसलिये एक चौथे समयमें सकल लोकके विषय व्यापी रहता है, इसका विशेष वर्णन
“श्रीविशेषावश्यक" में है वहांसे देखो ।
अब किंचित् बौद्ध मतवाला इस परमाणुके विषय प्रश्न करता है सो दिखाते है ।
( प्रश्न ) अहो जैन मतियों क्या जाग्रतमें स्वप्न एव वर्तते - हो सो परमाणुको निरअंश कहना आकाशके पुष्प समान है, क्यों कि देखो एक आकाश प्रदेशके विषयजो रहने वाला एक परमाणुसो उस परमाणुको ६ प्रदेश की फर्सना होती है, क्योंकि देखो जिस • समय में परमाणु पूर्व दिशाको फर्से है वो परमाणु उसी समय उसी स्वरूपसे पश्चिम दिशाको कदापि नहीं फर्स सक्ता, तो दूसरे स्वरूपसे 'फर्से है, ऐसा अनुभव सिद्ध होता है, क्योंकि जो उसी स्वरूपसे फर्सेतो - दिग् सम्बन्ध होसके नहीं, और पदिग् सम्बन्ध लोक में प्रसिद्ध है, क्योंकि देखो यह पश्चिम दिग् सम्बन्ध, यह पूर्व दिग् सम्बन्ध, यह उत्तर दिग् सम्बन्ध, यह दक्षिण दिग् सम्बन्ध, यह अधोदिग् सम्बन्ध यह ऊर्द्ध दिग् सम्बन्ध, इसरीतिले सर्व भिन्न २ मालूम होता है, पदिग् 'फर्सना परमाणुको कह सक्त नहीं, क्योंकि परमाणु निरअंश है सो
दिग् सम्बन्ध भिन्न २ क्योंकर बनेगा, हां अलबत्त सअंशके विषयतो दिग् सम्बन्ध भिन्न २ होता है, इसलिये परमाणुको निरअंश कहना ठीक नहीं, इसलिये तुम परमाणुको सअंश मान जिससे षटदिग् सम्बन्ध भिन्न २ फर्सना घट जाय, निरअंशमें कदापि
न घटेगी।
( उत्तर ) अहोबिवेक सुन्य बुद्धि विचक्षण क्षणिक विज्ञान बादी जरा ख्याल तो कर कि तेरा प्रश्न ही नहीं बनता, और तेरेको तेरे ही सिद्धान्त की खबर नहीं तो दूसरेसे तर्क क्यों करता है. क्योंकि देखो तुम्हारे सिद्धान्तोंमें ऐसा लिखा है कि ज्ञानके सन्तानके विषय एक
क्षण में कारण, कार्य्य भाव सम्बन्ध बनता है, तो अब
तुमको ही विचार
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