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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर
५४] जो दो प्रदेशी देश होय सो तो सश जान लेना, और जो प्रदेशी देश है सो निरअंश जान लेना, इस रीतिसे सर्व खन्दके कि विचार लेना, क्योंकि जितना खन्दका अवयव है उतना ही देश कहना, और उतना ही प्रदेश कहना, निरअंश अवयवको प्रदेश जानना,
और सोश अवयवको देश कहना, जो सप्रदेशी अवयवका संभव न होय तो निरअंश प्रदेशी अवयवको भी देश कहना, क्योंकि दो प्रदेश या खन्दके विषय प्रसिद्धपने जानना, अथवा एक देश प्रदेश लक्षण रूप व्यवहार तो जहां खन्दरूप परिणमा होय तहां तिसको परमाणु पुज कहिये, अथा जो खन्दपनेके परिणामको नपामां और प्रत्येक अर्थात् एकाएकी रहा है तिसको परमाणु कहना।
इस जगह प्रसंगात् कालकी स्थिति अर्थात् मर्यादा लिखते हैं कि एक परमाणु दूसरे परमाणुफे साथ मिले नहीं, अर्थात् खन्दभावको न प्राप्ति होय किन्तु एकाएकी रहे तो जघन्य करके तो एक समय काल अकेला रहे, और उत्कृष्टपनेसे अकेला रहे तो असंख्यात काल तक रहे परन्तु पीछे खन्दरूप परिणामको अवश्यमेव पामें, इस रीतिसे एक परमाणु आश्रय जान लेना और सर्व परमाणु आश्रय तो अनन्ताकाल जानना, ऐसा कोई समय न होगा कि जिसमें सर्व परमाणु खन्द पनेके परिणामको पावेगा। क्योंकि जिस वक्त केवली अपने केवल ज्ञानसे देखेगा उस वक्त लोकके विषय अनन्ता अनन्त परमाणु छुट्टा अर्थात् जुदा २ देखने में आवेगा और जो एकाएकी खन्द रहे तो उसकी स्थिति जघन्यसे एक समय और उतकृष्टसे असंख्याता कालकी स्थिति होय, क्योंकि पुद्गल संयोगको स्थिति असंख्याता कालसे अधिक होय नहीं, यह एक काल आश्रय जानना। सर्व काल आश्रय तो सर्वकालकी अवस्थान जानना क्योंकि ऐसा कोई काल नह है, कि जिस कालमें सर्व लोक खन्दसे सुन्य होय, इस रीतिका विचार सूक्ष्म बुद्धिवालेकी बुद्धिमें स्थिर होगा यह कालकी स्थिति कही।
__ अब कालकी मर्यादा इस रोतिसे है, कि परमाणु एका भावका त्याग करके अन्य परमाणु द्विणुक, त्रिणुक आदिकके
* आदिकके साथ
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