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[ द्रव्यानुभव - रत्नाकर ।
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आसमान जो यह काला २ दीखता है, उसीका नाम आकाश है. कि कुछ और चीज़ है ।
( उत्तर ) भो देवानुप्रियः जो तेरेको काला २ दीखता है, उसका नाम आकाश नहीं, यह तेरेको जो काला २ दीखता हैं इस आसमान में तो लाल, पीला, हरा, काला, सफेद, कई तरहके रंग होजाते हैं, सो इसको लौकिकमें तो बद्दल बोलते हैं परन्तु यह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन चारो चीज़ोंके कर्म रूप संयोगसे जीवोंके पुद्गल रूप सूक्ष्म शरीर हैं । और कोई मतमें यह चार भूत प्रानी वाजते हैं, और कोई मतमें इनको तत्व कहते हैं, और कोई मतमें परमाणुरूप कहते हैं। इसलिये इसका नाम आकाश नहीं, आकाश नामः पोलारका है, सो वह पोलार सर्ब जगह ब्यापक है, जो वह पोलार ब्यापक नहोय तो किसी जगह किसी बस्तुको जगह न मिले, सो दृष्टान्त देकर दिखाते हैं कि, देखो जैसे भीतबनी हुई अच्छी तरहसे चूना अस्त्रकारी हो रहा है और कोई छिद्र वा दरार भी नहीं, उस जगह कील ठोकनेसे वो लोहेकी कील उस दीवार में समाजाती है, इसलिये उस भीत में भी पोलार है, ऐसेही दरख्त वगैर: सबमें जानलेना । सो आकाश नाम जगह देने वालेका है जो जगहदेय उसका नाम आकाश, है । सो इस लोक आकाशमें चार द्वष्यतो मुख्य है और एक उपचारसे, पाचो द्रव्य व्याप्य व्यापक भावसे रहते हैं, सो इस लोक आकाशमें नय आदिकके कई भेद हैं सो आगे कहेंगे, इसरीतिसे आकाश द्रव्यका. वर्णन किया । अब धर्म अधर्म द्रव्यका बर्णन करते हैं
धर्मास्तिकाय ।
धर्म द्रव्य अर्थात् धर्मस्तिकाय जीव और पुद्गलको सहायकारी अर्थात् चलने में सहाय देय उसका नाम धर्मास्तिकाय है जहां २ धर्म. द्रव्य हैं तहां २ जीव और पुद्गलकी गति अर्थात् चलना फिरना होता है, और जिस जगह धर्मद्रव्य नहीं है, उस जगह जीव पुद्गलकी गति अर्थात: चलना फिरना भी नहीं है, ऐसा श्रीसर्वश देवने अपने ज्ञानमें देखा और
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