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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर
देता है सो इन रत्नोंको तू अपने पास यत्नसे रखियो और किस इनका जिक्र न करना और किसीको दिखाना भी नहीं। जब है। ऊपर आयकर किसी तरहका कष्ट पड़े उस वक्त इनमेंसे एक रत्न बेच कर अपना निर्वाह करियो, परन्तु जो तू किसी हरएकको अथवा किसी मुनीम गुमास्ता आदिकको बतावेगा तो वे लोग इसको कांचका टुकड़ा बताय कर तेरे पल्ले एक पैसा भी न पड़ने देवेंगे, इसलिये। अपने मामाके पास जाकर इन रत्नोंको दिखावेगा और मेरी शिक्षाका सब हाल कहेगा, तो वो तेरे संगमें कोई तरहका छल कपट न करेगा। इस रीतिसे कहकर और चार रत्न डिब्बीमें रखकर उस लड़केको वह डिब्बी दे दी। उस डिब्बीको लेकर उस लड़केने यत्नसे अपने घरमें छिपायकर रख दीनी, और कुछ दिनके बाद वह साहूकार तो मर गया और इधर उस लड़केकी नासमझ होनेसे मुनीम गुमास्ता थोड़े ही दिनमें कुल धन खा गये और वह साहकारका लड़का महा दुःखी होगया, तब अपने पिताको शिक्षा याद करके रत्नोंकी डिब्बी लेकर अपने मामाके पास गया, और वह डिब्बी मामाको दिखायकर और जो कुछ पिताने कहा था सो सब कह दिया। तब उसके मामाने उस डिब्बीमें रत्नोंको देखकर अपने चित्तमें विचारने लगा कि यह रतन तो हैं नहीं कांचके टुकड़े हैं अभी तो इसको अगाड़ीका ही धोखा बैठा हुआ है मेरी बातको सत्य न मानेगा इसलिये अब ऐसा उपाय करू कि जिससे इसको इसकी बुद्धिसे ही मालूम हो जाय कि ये कांचके टुकड़े हैं रन नहीं। ऐसा विचार कर उससे कहने लगा कि हे भान (भानजे) ये अपने रत्नोंको तो तू अपने पास रख क्योंकि अभी इन रत्नोंका ग्राहक कोई नहीं और बिना ग्राहकक चीजकी कीमत यथावत् मिलती है नहीं। इसलिये प्राहक होनपर इसको बेचना ठीक है सो तू इस जगह रह और दुकान पर रोजाना आया जाया कर अर्थात् दुकान परत हरदम बैठा रहाकर न मालूम कि किस वक्त कौन व्यापारी आ जाय। इसलिये तेरा बैठना दुकान पर हरदमका ठीक है। तव धो साहूकारका लड़का कहने ल
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