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दव्यानुभव-रत्नाकर।]
[१६६ उत्तरः- भो देवानुप्रिय ! इस भगुरुलघुके छः प्रकारके सामान्य स्वभावके नहीं जाननेसे शङ्का बनी रहती है । इस परमाणुके विषयमें श्री पन्नवणाजीको टीकामें भी खुलासा किया है, परन्तु ग्रन्थकारके अभिप्रायको जानना बहुत मुश्किल है। श्रीअनुयोगद्वारजी में भी इस परमाणुमें वर्णसे वर्णान्तर और रससे रसान्तरकी प्राप्ति कही है। इसलिये इस अगुरुलघुको बुद्धिपूर्वक विचारोगे तो यह बात यथावत् बैठेगी।
प्रश्न:- आपने शास्त्रोंकी साक्षी दी सो ठीक है, परन्तु बादर परमाणु की अपेक्षासे उनमें वर्णसे वर्णान्तर, रससे रसान्तर कहा होगा, परन्तु सूक्ष्म परमाणु अर्थात् जिसका दूसरा विभाग नहीं होय उसकी अपेक्षासे नहीं, ऐसा हमारी समझमें आता है।
उत्तरः-भो देवानुप्रिय ! जिनमतके शुद्ध उपदेशक के अपरिचय से और आत्म-अनुभव-ज्ञान न होनेके कारण ऐसी तर्क उठती है। सो यह तर्क करना ठीक नहीं है, क्योंकि शास्त्रों में पुद्गलका लक्षण कहा है कि जो मिलन, बिखरन, पूरन, गलन, सडन, पडन आदिधर्मासे युक्त होय उसका नाम पुद्गल है। तो यह लक्षण क्योंकर बनेगा ? क्योंकि वर्णसे वर्णान्तर, गन्धसे गन्धान्तर, रससे रसान्तर और स्पर्शसे स्प
र्शान्तर यदि सूक्ष्म परमाणुमें भी न होता तो पूरण, गलन, मिलन, बिखरण रूप यह लक्षण ही उसका असत्य हो जायगा। इसलिये इस बातको निसन्देह मानना होगा कि परमाणुमें वर्णसे वर्णान्तर, गन्धसे गन्धान्तर, रससे रसान्तर, स्पर्शसे स्पर्शान्तर होता है । कदाचित् फिर भी तुम कहो कि यह लक्षण तो स्कन्ध अथवा द्वयणुक-त्रयणुक आदिक के वास्ते कहा होगा। इसपर हमारा ऐसा कहना है कि पुद्गल स्वरूपमें तो परमाणु को ही प्रथम गणना है और प्रस्तुतमें पुद्गल कहनेसे परमाणु ही लिया जाता है। व्यणुक, प्रयणुक, तथा संख्यात, असंख्यात, अनन्तपरमाणुके जो स्कन्ध है उनमें तो रूपका रूपान्तर, रसकारसान्तर, गन्धका गन्धान्तर, स्पर्शका स्पर्शान्तर होना स्थूल बुद्धिवाले को भी नींबू, आम, नारङ्गो, केला, अमरूद ( जामफल ), जामन, अङ्गरादि फलोंमें प्रत्यक्ष देखने सप्रतीत होता है, सो इसमें तो किसीको सन्देह नही, परन्तु सर्वज्ञोंने तो यहाँ
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