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[ द्रव्यानुभव- रजाकर।
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पदी शक्ती अर्थकी स्मृति रूप कार्य होता है। शक्तिका ज्ञान होय नहीं तो अर्थकी स्मृति रूप कार्य भी होय नहीं। इस लिये जब पदकी सामर्थ्य रूप शक्ति ज्ञात होती है, तब पदार्थ के स्मृति रूप कार्य होता है । इसके ऊपर शंका समाधान भी वेदान्त प्रन्थोंमें अनेक रीति से हैं और उन्हीके अनुसार वृत्तिप्रभाकर नामक ग्रन्थमें भी हैं। परन्तु इस जगह उस वेदान्त के अनुसार शंका-समाधान लिखानेका कुछ प्रयोजन नही हैं, क्योंकि हमको तो केवल उनके शास्त्रानुसार उनकी मुख्य वृत्ति-रीति जिज्ञासुको दिखानी थी। उन लोगोंके मतमें इसरीति से शक्ति-सहित पदज्ञानसे पदार्थ की स्मृति होती है । और जितने पदार्थकी स्मृति होगी उतने ही पदार्थोंके सम्बन्ध का ज्ञान होग' । अथवा सम्बंधसहित सकल पदार्थ के शानको वाक्यार्थ ज्ञान कहते है, उसको ही शाब्दी प्रमा कहते हैं। जैसे 'नीलो घटः' ऐसा वाक्य हैं, उसमें चार पद हैं, एक तो नील पद हैं, दूसरा ओकार पद है, तीसरा घट पद है, चौथा विसर्ग पद हैं। नील-रूप- विशिष्ट में नीलपदकी शक्ति है, ओकार पद निरर्थक है, यह कथन व्युत्पत्तिवाद ग्रन्थमें स्पष्ट है, सो वहांसे देखना चाहिये, अथवा आकार पदका अर्थ भेद भी है, तोसरा घटपदकी घटत्व-विशिष्टमें शक्ति है, और विसर्ग की एकत्व - संख्या में शक्ति हैं। नीलपीतादिक पदको वर्ण और वर्णवाले शक्ति है, ऐसा कोश में लिखा है, और विसर्ग की एकत्व-संख्या में शक्ति हैं, यह बात भी व्याकरणसे जानी जाती है। घट पदकी घटत्व - विशिष्टमें शक्ति है, यह तो व्याकरण- प्रन्थसे और शक्तिवादादि प्रन्थ से मालुम होता है। न्यायसूत्रमें गौतमऋषिने तो ऐसा कहा है कि जाति, आकृति, व्यक्तिमें सकलपद की शक्ति है। वे अवयव के संयोगको आकृति कहते हैं, और अनेक पदार्थमें रहनेवाले एक नित्य धर्म को जाति कहते हैं, जैसे अनेक घटमें एक घटत्व नित्य है सो जाति है, जातिके आश्रयको व्यक्ति कहते हैं। इस मतमें घट पद की शक्ति . कपाल-संयोग-सहित घटत्व-विशिष्ट घट में है। और दीधितिकार शिरोमणि भट्टाचार्य के मतमें सकलपद की व्यक्ति-मात्र में शक्ति है, जाति • और माकृति में नहीं। सो इस मतमें घट पदका वाच्य केवल व्यक्ति
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