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[ द्रव्यानुभव-रक्षाकर
१६४ ]
दण्डत्व
विषय दण्डत्व भासे, काष्ठत्व भासे नहीं, पुरुषमें पुरुषत्व भासे मनुष्यत्व भासे नहीं, तेसे ही द्वितीय ज्ञानमें दण्ड विषय काष्ठत्वभासे है, भासे नहीं; और पुरुषमें मनुष्यत्व भासे है, पुरुषत्व भासे नहीं, दण्डव और काष्ठत्व दण्ड के विशेषण हैं, क्योंकि दण्डत्वादिकका दण्डमें जो सम्बन्ध तिसके प्रतियोगी दण्डत्वादिक हैं, और दण्डत्वादिकका दण्डमें सम्बन्ध है इस लिये सम्बन्धका अनुयोगी होनेसे दण्ड विशेष्य है।
इस रीतिले दण्डत्वका दण्ड विशेष्य है और पुरुषका दंड विशेषण है क्योंकि दंडका पुरुषमें जो संयोग सम्बन्ध तिसका प्रतियोगी दण्ड है, इस लिये पुरुषका विशेषण है, तिस संयोगका पुरुष अनुयोगी है, इसलिये विशेष्य है । जैसे पुरुषका दण्ड विशेषण है, तैसे ही पुरुषत्व, मनुष्यत्व भी पुरुष के विशेषण हैं, क्योंकि जैसे दण्डका पुरुषसे संयोग सम्बन्ध भासे है, तैसे ही पुरुषत्वादिक जातिका समवाय सम्बन्ध भासे है । तिस सम्बन्ध के पुरुषत्वादिक प्रतियोगी होनेसे विशेषण है, और अनुयोगी होनेसे पुरुष विशेष्य है । परन्तु इतना भेद है कि पुरुषके धर्म जो पुरुषत्व-मनुष्यत्वादिक, वे तो केवल पुरुष व्यक्तिके विशेषण हैं, और पुरुषत्वादिक-धर्म-विशिष्ट पुरुष- व्यक्ति में दण्डादिक विशेषण हैं, दण्डादिक भी दण्डत्वादिक धर्मके विशेष्य है, और पुरुषत्वादिकके विशेषण हैं, परन्तु दण्डत्वादिक विशेषण के सम्बन्धको धार कर पुरुषादिक विशेष्य के सम्बन्धी उत्तरकालमें दण्डादिक होते हैं । इस रीतिले केवल व्यक्तिमें पुरुषत्व-मनुष्यत्व विशेषण हैं और पुरुषत्व मा मनुष्यत्व - विशिष्ट व्यक्तिमें दण्डत्व वा काष्ठत्व - विशिष्ट दण्ड विशेषण हैं, और केवल दण्ड व्यक्तिमें दण्डत्व वा विशेषण हैं ।
इस माफिक ज्ञानके विषय का विचार बहुत सूक्ष्म है। न्याय शास्त्र चक्रवर्ती गदाधर भट्टाचार्य्यने संगति-ग्रंथ में बहुत लिखा है। और जयाराम पंचानन तथा रघुनाथ भट्टाचार्य्यने विषयता- विचार आदि ग्रन्थ में उन्हें लिखा हैं। सो जिज्ञासुको क्लिष्ट और अनुपयोगी ज कर दुर्बोध होनेसे समझने के माफिक रीति मात्र लिखाई है ।
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काष्ठत्व