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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर
१२४] हैं एकतो अनादि, स्वाभाविक अकृत्रिम, दूसरा सादी कृत्रिम के अनादिअकृत्रिमके भी दो भेद हैं- एकतो स्वभाविक, दूसरा सम्बन्धसे । सो अनादि स्वभाविक तो उसको कहते हैं कि मतमें जीव, अजीव । सो जीवका तो चेतना लक्षण ज्ञानमय जो सो करके रहित, सिद्ध अथवा संसारीजीव ऐसा नाम। और अमीर आकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मस्तिकाय और पुद्गलपरमाणु। उसी कोही कोई तो आत्मा कहता है। कोई ब्रह्म कहता है, कोई परमात्मा कहता है, सो ये स्वभाविक अनादि नाम है। ___ अब दूसरा आदि संयोग नामका भेद कहते है कि जीवोंके कर्मोंका संयोग अनादि कालसे हो रहा है सो ही दिखाते हैं कि-जीव कर्मके संयोगसे ८४ लाख योनिमें भ्रमण करता है; सो वो ८४ लाख योनि अनादि कालसे है, सो वो संयोग सम्बन्धसे ८४ लाख योनियोंके जुदे २ नाम अनादिसे है । इसरीतिसे अनादिसंयोगसम्बन्धसे नामका वर्णन किया। ___ अब कृत्रिम नामका कथन करते है। सो उसके भी दो भेद हैंएकतो सांकेतिक, दूसरा आरोपक । सो सांकेतिक तो उसको कहते हैं कि जिस वक्तमें जो मनुष्यादि जन्म लेता है, उस वक्तमें उसके माता, पिता अपनी इच्छानुसार उसका नाम देते हैं और उसी सांकेतिक नामसे उसको सब कोई बुलाते हैं। और उस नामके अनुसार उसमें गुण नहीं होता, इसलिये इसको सांकेतिक कहा । क्योंकि देखो जैसे ग्वालियाला" गायके चराने वाले अपने पुत्रादिकका 'इन्द्र. नाम रख लेते हैं और वह इन्द्रके ही नामसे बोलता है, परंतु उसमें इन्द्रका गुण कुछ है नहीं ॥
अब दूसरा आरोपका भेद कहते हैं कि जैसे कितनेक मनुष्य गाय मेंस आदिकको लायकर लाड़ (प्यार ) से उसका नाम रख लत। गंगा, जमुना, सो जबतक वह गाय आदि उनके यहां रहती है, त तो वे उसको उसी आरोप नामसे बुलाते हैं, परन्तु जब वे दूस बेचदेते हैं तो वह ले जाने वाला फिर उसको उस नामसे नहीं बुल इसलिये इसको आरोप कहा।
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