SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर सो उस रोज़ दिवाली हुई, सो उस दिवालीका बर्तमान दिवाली आरोप करते हैं, कि आजका दिन मोटा है, क्योंकि महावीर स्वामीका निर्वाण कल्याणक है, सो आज विल करके धर्म कृत्य करना चाहिये, इसरीतिसे भव्यजीव भक्तिक वस होकर उस भूत कल्याणककाआरोप करके अपनी धर्म कृत्यादि करते हैं। __ अब दूसरा उदाहरण कहते हैं कि जैसे जिनको सिद्ध कहे. क्योकि केवलीके सिद्धपना अवश्य होने वाला है, इसलिये कुछतो सिद्धपना और कुछ असिद्धपना वर्तमानमें है इसका नाम बर्तमान नयगम है। __ अब तीसरा उदाहरण कहते हैं कि जैसे कोई रसोईकर रहाहै और उसको कोई पूछे कितेने क्या किया है, तब वो कहेकि मैंने रसोई करी है, अब इस जगह रसोईके कितने हो अबयवतो सिद्ध होगये हैं कितने ही सिद्ध और करने बाकी हैं, परनु पूर्वापर भूत अवयव क्रिया सन्तान एक बुद्धि आरोपकरके बर्तमान कहता है, इस रीतिसे आरोपनयगमका भेद जानना, सो यह नयगमनयके ३ भेद हुए। । ४–अव संग्रह नय कहते हैं-उस संग्रह नयके भी दो भेद हैं एकतो. सामान्य संग्रह, २ विशेष संगह, सो प्रथम भेदका उदाहरण कहते हैं. कि “द्रव्यानी सर्वानी अविरोधानी इसका अर्थ ऐसा है कि द्रव्यपने में सर्वका अबिरोध अर्थात् द्रव्यपनेमें सर्व ही द्रव्य हैं। __ अब दूसरा भेद कहते हैं कि “जीवाः सव्वे अविरोधिनाः" यह दूसरा भेद हुआ, क्योंकि सर्व द्रव्यमेंसे जीव द्रव्य जुदा होगया, इस रीतिसे संग्रह नयके भेद कहे। ५-अबव्यवहार नय कहते हैं कि जो संगहनयका विषय है उसक भेदको दिखावे उसका नाम व्यवहार नय है, सो उस व्यबहार नय भी संग्रह नयकी तरह दो भेद हैं-१ सामान्य संगृह भेदक व्या २ विशेष संगृहभेदक व्यबहार, इस रीतिसे दो भेद हुए, सो भेदका उदाहरण दिखाते हैं कि “दव्य जीवा जीवौं ये सामा संग्रह भेदक व्यवहार है। और "जीवाः संसारिन सिद्धान ये सामान्य न सिद्धार्थ" यह Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy