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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[७६ इन चारो भांगोको प्रथम जीव द्रव्यमें दिखाते हैं। जीवमें ज्ञानादि गुण सम्बाय सम्बन्धसे अनादि अनन्त है, और नित्य है, और कोई अपेक्षासे जीवमें ज्ञानादिक गुण सादी सान्त है, और कोई अपेक्षासे जीवमें ज्ञानादिक गुण सादी अनन्त हैं, परन्तु अनादि सांत भांगा है नहीं। दूसरी रीति और भी है कि सर्व जीवोंकी अपेक्षासे तो जीवमें कर्म अनादि अनन्त है, और भव्य की अपेक्षासे कर्म अनादि सान्त है, और चारगति अर्थात् देवगति, मनुष्यगति, त्रियंचगति और नर्कगति, इसकी अपेक्षा करें तो कर्म सादी सान्त है। क्योंकिदेखो जीव शुभ कर्म, अशुभ कर्मके ज़ोरसे ही जन्म, मरण करता है, इसलिये सादी सान्त है, और जो जीव कर्म से मुक्त अर्थात् छूटकर मोक्षमें प्राप्त होता है वो जीव सादी अनन्त भांगेसे है, क्योंकि मोक्षमें गया उसकी आदि है, फिर कभी संसारमें न आवेगा इसलिये अन्त नहीं 'किन्तु अनन्त है। इसरीतिले जीवमें चौभगी कही।
अब धर्मस्ति कायमें चौभगी कहते हैं। धर्मस्ति कायके चार गुण और लोक प्रमाण खन्द ये पांच चीज़ अनादि अनन्त है, और अनादि सान्त भांगा इसमें नहीं है; देश, प्रदेश, अगुरुलघु,ये सादी सान्त भांगेसे हैं, और सिद्ध जीवसे धर्मस्ति कायके जो प्रदेश लगे हुए हैं वे सादी अनन्त भांगेसे हैं; यह चार भांगे कहे। इसीरीतिसे अधर्म स्ति कायमें और आकाशमें भी समझ लेना। पुद्गलमें चार गुण अनादि अनन्त है; और पुद्गलका खन्द सर्व सादी सान्त भांगेसें है, दो भांगे 'पुद्गलमें बनते हैं नहीं । काल द्रव्यमें चार गुण अनादि अनन्त हैं; और 'पर्यायमें अतीतकाल अर्थात् भूतकाल अनादि सान्त है, वर्तमान काल सादी सान्त है, अनागत अर्थात् भविष्यत काल सादी अनन्त है, इस रीतिसे इन छओ द्रव्यों में चौभागी कही।
अब द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावमें चौभागी कहते हैं, सौ जोव द्रव्य अर्थात् गुण पर्यायका भाजन समूह रूप अनादि अनन्त है, जीवद्रव्य का स्वय क्षेत्र अर्थात् असंख्यात प्रदेश सादी सान्त है, क्योंकि उन प्रदेशोंमें आकुश्चन, प्रसारन गुण है, इसलिये सादी सान्त कहा, सो भी
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