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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौः परमानंदलहरी परचेतन्यदीपिका । स्वयंप्रकाशकिरणा नित्यवेभवशालिनी ॥१॥ विशुद्ध केवलाखंडा सत्यकालात्मरूपिणी । आदिमध्यान्तरहिता महामायाँविलासिनि ॥२॥ गणपात्रपारच्छेत्री सर्वतत्त्वविकासिनी । स्त्रीपुंसभावरसिका जगत्सर्गादिलंपटा ॥३॥ अशेषनामरूपादिभेदाभेदितविभ्रमा । अनादिवासनारूपा वासनोद्यत्प्रपंचिका ॥४॥ प्रपंचोपशमप्रौढा चराचरजगन्मयी । समस्तजगदाधारा सर्वसन्जीवनोत्सुका ।।५।। भक्तचिन्तामयानंतविधवैभवविग्रहा। शुगरादिनवप्रौढ रसानुगुण संभ्रमा ।।६।। सर्वाकर्षणवश्यादि सर्वकर्मधुरंधरा । विज्ञानपरमानंदविद्या संतानसिद्धिदा ।।७।। आयुरारोग्यसौभाग्यबलश्रीकीर्तिभाग्यदा। धनधान्यमणिवस्त्रभूषालेपनमाल्यदा ॥८॥ गृहग्राममहाराज्यसाम्राज्य सुखदायिनी । सप्तांगकुलसंपूर्णसार्वभौमपदप्रदा ॥९॥ ब्रह्माविष्णुशिवेन्द्रादिपदविभ्रालक्षणा । भुक्तिमुक्तिमहाभक्ति विरक्त्याद्वैतवादिनी ॥१०॥ निग्रहानु हापेक्षानिर्णितश्रीपदान्विता । परकायप्रवेशादियोगसिद्धिप्रदायिनी ॥११॥ सृष्टसीवनग्रौढा दुष्ट संहारसिद्धिदा । लीलाविनिर्मितानेककोटिब्रह्मांडमंडला ॥१२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.034160
Book TitleVidyopasna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherHimmatram Yagnik
Publication Year1987
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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