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________________ ४९ तत्त्वार्थ सूत्र नौवाँ अध्याय आस्रव-निरोधः संवरः ॥१॥ अर्थ - आस्रव का निरोध ही संवर है । स गुप्ति-समिति-धर्माऽनुप्रेक्षा-परीषहजय-चारित्रैः ॥२॥ अर्थ - वह संवर गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र से होता है । तपसा निर्जरा च ॥३॥ अर्थ - तप से संवर और निर्जरा दोनों होते हैं। सम्यग् योग निग्रहो गुप्तिः ॥४॥ अर्थ - योगों का सम्यग् निग्रह करना गुप्ति है । ईर्या-भाषैषणा-ऽऽदाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः ॥५॥ अर्थ - ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उत्सर्ग - ये पाँच समितियाँ है।। उत्तमः क्षमा-मार्दवा-ऽऽर्जव-शौच-सत्य-संयमतपस्त्यागा-ऽऽकिञ्चन्य-ब्रह्मचर्याणि धर्मः ॥६॥ अर्थ - क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अंकिचन्य और ब्रह्मचर्य ये दस प्रकार के उत्तम धर्म हैं। अनित्या-ऽशरण-संसारैकत्वा-ऽन्यत्वा-ऽशुचित्वाऽऽस्त्रव-संवर-निर्जरा-लोक-बोधिदुर्लभ-धर्मस्वाख्यातत्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ॥७॥ अर्थ - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व,
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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