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________________ ३२ छठा अध्याय काय - वाङ्मनः कर्म योगः ॥ १ ॥ अर्थ - काया, वचन और मन की क्रिया योग है । स आस्रवः ॥२॥ अर्थ - वह (योग ही) आस्रव है । तत्त्वार्थ सूत्र शुभः पुण्यस्य ॥३॥ अर्थ – शुभ योग पुण्य कर्म का आस्रव है । - अशुभः पापस्य ॥४॥ अर्थ - अशुभ योग पाप कर्म का आस्रव है । सकषाया- कषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः ॥५॥ अर्थ - कषाय सहित आत्मा का योग साम्परायिक आस्रव तथा कषाय रहित आत्मा का योग ईर्यापथ आस्रव होता है । अव्रत-कषायेन्द्रिय-क्रिया: पंच- चतुः- पंच पंचविंशति संख्या पूर्वस्य भेदाः ॥ ६ ॥ अर्थ - पूर्व के अर्थात् साम्परायिक आस्रव के अव्रत, कषाय, इन्द्रिय, और क्रिया ये (चार) भेद हैं तथा क्रमानुसार इनकी संख्या पाँच, चार, पाँच और पच्चीस है । तीव्र - मन्द - ज्ञाता - ऽज्ञात भाव - वीर्याऽधिकरण विशेषेभ्यस्तद्विशेषः ॥७॥ - अर्थ - तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, वीर्य विशेष और अधिकरण विशेष के भेद से उसकी (आस्रव की) विशेषता होती है ।
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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