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________________ ३० न जघन्य - गुणानाम् ॥३३॥ अर्थ - जघन्य गुणों वाले पुद्गलों का परस्पर बंध नहीं होता है। तत्त्वार्थ सूत्र गुण-साम्ये सदृशानाम् ॥३४॥ अर्थ- गुणों की समानता होने पर सदृश पुद्गलों का पारस्परिक बंध नहीं होता है । द्वयधिकाऽऽदि-गुणानां तु ॥ ३५॥ अर्थ - दो या दो से अधिक अंशों में गुणों की भिन्नता होने पर पुद्गलों का पारस्परिक बंध होता है । बन्धे समाऽधिकौ पारिणामिकौ ॥ ३६ ॥ अर्थ - बन्ध के समय, सम और अधिक गुण क्रमशः सम और हीन गुण को अपने रूप में परिणमन करानेवाले होते हैं । गुण- पर्यायवद् द्रव्यम् ॥३७॥ अर्थ - द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है । कालश्चेत्येके ॥३८॥ अर्थ - कुछ आचार्य काल को भी द्रव्य रूप मानते हैं । सो - ऽनन्तसमयः ॥३९॥ अर्थ - वह (काल) अनन्त समय वाला है । द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४० ॥ अर्थ - जो द्रव्य में सदा रहें और स्वयं गुणों से रहित हों, वे गुण कहलाते हैं ।
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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