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न जघन्य - गुणानाम् ॥३३॥
अर्थ - जघन्य गुणों वाले पुद्गलों का परस्पर बंध नहीं
होता है।
तत्त्वार्थ सूत्र
गुण-साम्ये सदृशानाम् ॥३४॥
अर्थ- गुणों की समानता होने पर सदृश पुद्गलों का पारस्परिक बंध नहीं होता है ।
द्वयधिकाऽऽदि-गुणानां तु ॥ ३५॥
अर्थ - दो या दो से अधिक अंशों में गुणों की भिन्नता होने पर पुद्गलों का पारस्परिक बंध होता है । बन्धे समाऽधिकौ पारिणामिकौ ॥ ३६ ॥
अर्थ - बन्ध के समय, सम और अधिक गुण क्रमशः सम और हीन गुण को अपने रूप में परिणमन करानेवाले होते हैं ।
गुण- पर्यायवद् द्रव्यम् ॥३७॥
अर्थ - द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है ।
कालश्चेत्येके ॥३८॥
अर्थ - कुछ आचार्य काल को भी द्रव्य रूप मानते हैं ।
सो - ऽनन्तसमयः ॥३९॥
अर्थ - वह (काल) अनन्त समय वाला है ।
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४० ॥
अर्थ - जो द्रव्य में सदा रहें और स्वयं गुणों से रहित
हों, वे गुण कहलाते हैं ।