________________
श्री अष्टक प्रकरण
ur
२. अथ स्नानाष्टकम्
द्रव्यतो भावतश्चैव, द्विधा स्नानमुदाहृतम् । बाह्यमाध्यात्मिकं चेति, तदन्यैः परिकीर्त्यते ॥१॥
अर्थ - तत्त्ववेत्ताओं ने द्रव्य और भाव दो प्रकार का स्नान कहा है। अन्य दर्शनकार द्रव्यस्नान को बाह्य (शरीर - संबंधी) स्नान तथा भावस्नान को आध्यात्मिक (मन - संबंधी) स्नान कहते हैं । द्रव्य स्नान - जल आदि द्रव्य से शरीर की शुद्धि करना । द्रव्य स्नान के दो प्रकार हैं १. प्रधान द्रव्य स्नान, २. अप्रधान द्रव्य स्नान । जो भावस्नान का कारण बने वह प्रधान द्रव्य स्नान । जल आदि से स्नान करने के बाद देवता आदि की पूजा की जाय तो वह स्नान प्रधान द्रव्य स्नान होता है, अन्यथा अप्रधान द्रव्यस्नान होता है। यह हकीकत ग्रंथकार ने आगे दूसरे-तीसरे श्लोक में बतायी है । भावस्नान - शुभ ध्यान के द्वारा आत्मा की शुद्धि करना ।
जलेन देहदेशस्य, क्षणं यच्छुद्धिकारणम् । प्रायोऽन्यानुपरोधेन, द्रव्यस्नानं तदुच्यते ॥२॥
अर्थ - जो स्नान जल से शरीर के देश-चमड़ी की क्षणभर शुद्धि करे वह द्रव्यस्नान कहा जाता है। यह स्नान नये आनेवाले मैल को रोकने में असमर्थ होने से क्षणभर के लिए ही शुद्धि करता है। अरे ! रोगग्रस्त शरीर को क्षणभर