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श्री अष्टक प्रकरण
भवनपति आदि सर्व देवों के पूजनीय हैं, सभी योगियों - अध्यात्म-चिंतकों के ध्यान करने योग्य हैं, उपदेश देने के द्वारा नैगम आदि नयों के और साम आदि नीति के उत्पादक हैं, वह महादेव कहलाते हैं ।
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एवं सद्वृत्तयुक्तेन, येन शास्त्रमुदाहृतम् । शिववर्त्म परं ज्योतिस्त्रिकोटीदोष - वर्जितम् ॥५॥
अर्थ - इस प्रकार राग आदि दोषों से रहित शुद्ध वर्तन से युक्त जिस देव ने मोक्ष के मार्ग रूप, महामोह रूप घोर अंधकार का नाश करने में समर्थ होने से प्रदीप रूप और कष-छेद-ताप इस त्रिकोटी परीक्षा में दोषों से रहित शास्त्र का उपदेश दिया है, वे महादेव हैं ।
यस्य चाराधनोपायः, सदाऽऽज्ञाभ्यास एव हि । यथाशक्तिविधानेन, नियमात् स फलप्रदः ॥६॥ अर्थ - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार लाभनुकसान की तुलना रूप विधि से यथाशक्ति आज्ञा का अभ्यास करना यही जिनकी आराधना का उपाय है यथाशक्ति आज्ञा का पालन करने से ही जिनकी आराधना हो सकती है और जिनकी आज्ञा का अभ्यास ही नियम से फल देनेवाला है, वे महादेव कहे जाते हैं ।
सुवैद्यवचनाद् यद्वद्, व्याधेर्भवति संक्षयः । तद्वदेव हि तद्वाक्याद् ध्रुवः संसारक्षयः ॥७॥
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