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अध्यात्मकल्पद्रुम योगस्य हेतुर्मनसः समाधिः,
परं निदानं तपसश्च योगः। तपश्च मूलं शिवशर्मवल्ल्या, ___मनः समाधि भज तत्कथञ्चित् ॥१५॥
अर्थ - "मन की समाधि (एकाग्रता-रागद्वेषरहितपन) योग का कारण है। योग तप का उत्कृष्ट साधन है और तप शिवसुख-लता का मूल है, इसलिये किसी प्रकार से मन की समाधि रख ।" स्वाध्याययोगैश्चरणक्रियासु,
व्यापारणैर्द्वादशभावनाभिः । सुधीस्त्रियोगी सदसत्प्रवृत्ति___ फलोपयोगैश्च मनो निरुन्ध्यात् ॥१६॥
अर्थ - "स्वाध्याय (शास्त्र का अभ्यास), योगवहन, चारित्र क्रिया में व्यापार, बारह भावनाएँ और मन-वचनकाया के शुभ अशुभ प्रवृत्ति के फल के चिंतन से सुज्ञ प्राणी मन का निरोध करें।"
भावनापरिणामेषु, सिंहेष्विव मनोवने । सदा जाग्रत्सु दुर्ध्यान-सूकरा न विशन्त्यपि ॥१७॥
अर्थ - "मनरूपी वन में भावना अध्यवसायरूप सिंह जब तक सदा जाग्रत रहता है तबतक दुर्ध्यानरूप सुअर उस वन में प्रवेश भी नहीं कर सकते हैं।"