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प्रशमरति
विधिना भैक्ष्यग्रहणं स्त्रीपशुपण्डकविवर्जिता शय्या । ईर्याभाषाऽम्बरभाजनैषणाऽवग्रहाः शुद्धाः ॥ ११६॥
अर्थ : [आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध की प्रथम चूलिका के सात अध्ययन के नाम ] विधिपूर्वक, भिक्षाग्रहण, स्त्री- पशु - नपुंसक से रहित उपाश्रय, इर्याशुद्धि, भाषाशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, पात्रशुद्धि और अवग्रह शुद्धि ॥ ११६ ॥ स्थाननिषद्याव्युत्सर्गशब्दरूपक्रियाः परान्योऽन्याः । पञ्चमहाव्रतदार्द्धं विमुक्तता सर्वसङ्गेभ्यः ॥ १९७॥
अर्थ : आचारांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध की दूसरी चूलिका के सात अध्ययनों के नाम स्थानक्रिया, निषद्याक्रिया, व्युत्सर्गक्रिया शब्दक्रिया, रूपक्रिया, परक्रिया और अन्योन्यक्रिया । पाँच महाव्रतों में दृढ़ता [तीसरी चूलिका ] सर्वसंग से मुक्ति [ चौथी चूलिका] ॥११७॥ साध्वाचारः खल्वयमष्टादशपदसहस्त्रपरिपठितः । सम्यगनुपाल्यमानो रागादीन् मूलतो हन्ति ॥ ११८ ॥
अर्थ : अट्ठारह हजार पदों से कथित और यथोक्त विधि से पालन किया हुआ साध्वाचार सचमुच राग-द्वेषमोह का नाश करता है ॥ ११८ ॥
आचाराध्ययनोक्तार्थभावना - चरणगुप्तहृदयस्य । न तदस्ति कालविवरं यत्र क्वचनाभिभवनं स्यात् ॥११९॥