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अर्थ :- पवन से चंचल बनी हुई तरंगों के समान आयुष्य अत्यन्त चंचल है। सभी सम्पत्तियाँ, आपत्तियों से जुड़ी हुई हैं। समस्त इन्द्रियों के विषय संध्या के आकाशीय रंग की तरह चंचल हैं। मित्र, स्त्री तथा स्वजन आदि का संगम स्वप्न अथवा इन्द्रजाल के समान है । अतः इस संसार में सज्जन के लिए कौनसी वस्तु आलम्बन रुप बन सकती है? ॥१०॥ प्रातर्धातरिहावदातरुचयो, ये चेतनाचेतना, दृष्टा विश्वमनः-प्रमोदविदुरा भावाः स्वतः सुन्दराः । तांस्तत्रैव दिने विपाकविरसान् हा नश्यतः पश्यतः, चेतः प्रेतहतं जहाति न भवप्रेमानुबन्धं मम ॥ ११ ॥
शार्दूलविक्रीडितम् अर्थ :- हे भाई ! प्रातःकाल में (इस संसार में) चेतन अथवा अचेतन पदार्थ के जो स्वतः सुन्दर भाव, अत्यन्त रुचि को उत्पन्न करने वाले और लोगों के मन को प्रमोद देने वाले हैं, वे ही भाव परिपाक दशा को प्राप्तकर उसी दिन विरस होकर नष्ट हो जाते हैं, फिर भी आश्चर्य है कि प्रेत से नष्ट हुआ मेरा मन संसार-प्रेम के अनुबन्ध को नहीं छोड़ता है ॥११॥
॥अनित्य भावनाष्टकम् ॥ मूढ मुह्यसि मुधा, मूढ मुह्यसि मुधा, विभवमनुचिंत्य हृदि सपरिवारम् । शांत-सुधारस