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अर्थ :- इसके (धर्म के) प्रभाव से ही सूर्य और चन्द्रमा विश्व के उपकार के लिए सदा उदित होते हैं और ग्रीष्म के भयंकर ताप से संतप्त पृथ्वी को समय पर मेघ शान्त करता है ॥१२७॥
उल्लोलकल्लोलकलाविलासैर्न प्लावयत्यम्बुनिधिः क्षितिं यत् ।
न घ्नन्ति यद्व्याघ्रमरुद्दवाद्या:
धर्मस्य सर्वोऽप्यनुभाव एषः ॥ १२८ ॥ इन्द्रवज्रा
अर्थ :- उछलती हुई जल - तरंगों से समुद्र पृथ्वीतल को डुबो नहीं देता है तथा व्याघ्र, सिंह, तूफान और दावानल (सर्व प्राणियों का ) संहार नहीं करते हैं; यह धर्म का ही प्रभाव है ॥१२८॥
यस्मिन्नैव पिता हिताय यतते, भ्राता च माता सुतः, सैन्यं दैन्यमुपैति चापचपलं यत्राऽफलं दोर्बलम् । तस्मिन् कष्टदशाविपाकसमये, धर्मस्तु संवर्मितः, सज्जः सज्जन एष सर्वजगतस्त्राणाय बद्धोद्यमः ॥ १२९ ॥ शार्दूलविक्रिडितम् अर्थ :- जिस दशा में पिता, माता, भाई और पुत्र भी हित के लिए प्रवृत्ति नहीं करते ( बल्कि अहित के लिए ही प्रवृत्ति करते हैं), सैन्य भी दुर्बल हो जाय और धनुष-बाण को
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शांत-सुधारस