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मंगलाचरण नीरन्ध्रे भवकानने परिगलत् पंचाश्रवांभोधरे, नानाकर्मलतावितानगहने, मोहान्धकारोद्धरे । भ्रान्तानामिह देहिनां हितकृते कारुण्यपुण्यात्मभिस्तीर्थेशैः प्रथिताः सुधारसकिरो रम्या गिरः पान्तु वः ॥१॥
(शार्दूलविक्रीडित) अर्थ :- यह संसार रुपी जंगल अत्यन्त ही सघन है, जो चारों ओर से बरसते हुए पाँच प्रकार के आस्रव रूप बादलों से घिरा है, जो अनेक प्रकार की कर्म-लताओं से अत्यन्त गहन है और मोहरुपी अन्धकार से व्याप्त है, इस जंगल में भूले पड़े प्राणियों के हित के लिए करुणासागर तीर्थंकर भगवन्तों ने अमृत रस से भरपूर और अत्यन्त आनन्ददायी वाणी का जो विस्तार किया है, वह वाणी आपका संरक्षण करे ॥१॥
॥पीठिका ॥ स्फुरति चेतसि भावनया विना, न विदुषामपि शान्तसुधारसः। न च सुखं कृशमप्यमुना विना, जगति मोहविषादविषाकुले ॥२॥ द्रुतविलम्बित शांत-सुधारस