________________
__ शब्दार्थ : 'इन्द्रियों के विकार दोष से बाधित पत्नी भी अपने पति के प्राणहरण कर लेती है। जैसे प्रदेशी राजा को उसकी पत्नी सूरिकान्ता रानी ने विष देकर मार डाला था ॥१४८॥ सासयसुक्खतरस्सी, नियअंगस्समुन्भवेण पियपुत्तो ।
जह सो सेणियराया, कोणियरण्णा खयं नीओ ॥१४९॥ __शब्दार्थ : शाश्वत सुख प्राप्त करने का अभिलाषी, भगवन् के वचनों में अनुरक्त और क्षायिकसम्यक्त्वी श्रेणिकराजा अपने ही अंगज और प्रियपुत्र कोणिक राजा द्वारा मार डाला गया था । अतः पुत्र स्नेह भी व्यर्थ है ॥१४९॥ लुद्धा सकज्जतुरिआ, सुहिणो वि विसंवयंति कयकज्जा ।
जह चंदगुत्तगुरुणा, पव्वयओ घाइओ राया ॥१५०॥ ___शब्दार्थ : जो व्यक्ति राज्य आदि में लुब्ध होते हैं, वे अपना कार्य सिद्ध करने में उतावले होते हैं; परंतु अपना काम बन जाने के बाद अपने मित्रों के खिलाफ बोलने लगते हैं; मित्रों के साथ वे द्रोह करने लगते हैं । जैसे चन्द्रगुप्त राजा के गुरु चाणक्यमंत्री ने पर्वत राजा से विश्वासघात किया ॥१५०॥ निययाऽवि निययकज्जे, विसंवयंतंमि हुँति खरफरुसा । जह राम-सुभूमकओ, बंभक्खत्तस्स आसि खओ ॥१५१॥
शब्दार्थ : स्वजनसंबंधी भी अपना काम बन जाने के बाद क्रूर और कठोर वचन बोलने वाले बन जाते हैं । जैसे उपदेशमाला