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शब्दार्थ : क्षमाशील पुरुष का संसार में नासमझ लोग उपहास किया करते हैं कि 'यह तो बेचारा बकरी-सा कमजोर है। इसे कोई भी दबा सकता है।' इस अपमान से प्रताड़ित होकर भी वह अपनी क्षमा नहीं छोड़ता । 'देवों को बाघ के खून की बलि नहीं दी जाती, बेचारे गरीब बकरे की ही बलि दी जाती है। इसीलिए बलवान को कोई नहीं मार सकता; स्वार्थी लोगों के इस प्रकार के वचन सुनकर भी क्षमाधारी वे समतावान पुरुष अपनी उत्तम वृत्ति को नहीं छोड़ते । वे तो क्षमावृत्ति में ही स्थिर रहते हैं ॥४६४॥ वच्चइ खणेण जीवो, पित्तानिलधाउ सिंभखोभम्मि । उज्जमह मा विसीयह, तरतमजोगो इमो दुलहो ॥४६५॥
शब्दार्थ : भव्यजीव ! यह जीव वात, पित्त और कफ तथा सप्तधातुओं के विकार से बना हुआ है; उनके क्षुब्ध होते ही यह एक पल में नष्ट हो जाता है । यह सोचकर क्षमा आदि दस धर्मों के पालन में उद्यम कर । क्योंकि धर्म साधन योग्य तुम्हें जैसी भी शरीरादि सामग्री न्यूनाधिक रूप में मिली है, वह बड़ी ही दुर्लभ है । इसीलिए किसी प्रकार का विषाद मत कर. अकर्मण्य बनकर मत बैठ: झटपट इस दुर्लभ सामग्री से लाभ उठा ॥४६५।। पंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं, आरिए जणे सुकुलं । साहुसमागम-सुणणा, सद्दहणाऽरोगपव्वज्जा ॥४६६॥ उपदेशमाला
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