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परस्वत्वकृतोन्माथा, भूनाथा न्यूनतेक्षिण: । स्वस्वत्वसुखपूर्णस्य न्यूनता न हरेरपि ॥ ७ ॥
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भावार्थ : पर पदार्थों में स्वत्व की कल्पना से उन्मत्त बने राजा भी सदैव अपनी न्यूनता को ही देखते हैं । जबकि स्व अर्थात् आत्मा को ही स्व मानने के पूर्ण सुख का अनुभव करने वाली आत्मा को इन्द्र से भी कुछ भी न्यूनता का आभास नहीं होता ॥७॥
कृष्ण पक्षे परिक्षीणे, शुक्ले च समुदञ्चति । द्योतन्ते सकलाध्यक्षाः पूर्णानन्दविधोः कलाः ॥ ८ ॥
भावार्थ : कृष्णपक्ष की समाप्ति पर शुक्लपक्ष का उदय होता है, तब चन्द्रमा की कलाएँ प्रकाशित होती हैं । उसी प्रकार आत्मा का कृष्णपक्ष अर्थात् अज्ञान, माया, आदि का नाश होने पर पूर्ण आनंद रूप कलाएँ प्रकट होती हैं
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मग्नताष्टकम् - 2
प्रत्याहृत्येन्द्रियव्यूहं समाधाय मनो निजम् । दधच्चिन्मात्रविश्रान्तिं मग्न इत्यभिधीयते ॥ १ ॥
भावार्थ : विषयों की ओर आकृष्ट होती हुई इन्द्रियों को उनसे विमुख कर तथा अपने मन को स्थिर कर चैतन्य मात्र में विश्राम प्राप्त आत्मा मग्न कहलाती है ॥१॥