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गुरोर्यत्र परिवादो, निन्दा चापि प्रवर्तते । कर्णौ तत्र पिधातव्यौ, गन्तव्यं च ततान्यतः ॥
जहाँ हमारे गुरु के विषय में अपशब्द बोले जाते हों, उनकी निन्दा होती हो, वहाँ अपने कान बन्द कर लेने चाहिए और वहाँ से अन्यत्र चले जाना चाहिए।
प्रत्येक गुरु पूर्णिमा के दिन हमसे जितना सम्भव हो सके, छोटी सी भेंट भी गुरु को देनी चाहिए। मात्र आप यहाँ पढ़ते हैं, इसीलिए नहीं, जब आप बड़े हो जाएँ, तब भी। चाहे आप दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हों, आपके गुरु आपको याद आने चाहिए। गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें कोई भेट देना अवश्य याद रहनी चाहिए। आपके गुरु ६० वर्ष के हों, ७०/७५/८० वर्ष के हों, तब भी वे कहाँ हैं? किस प्रकार जी रहे हैं? उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं है ना? इस बात का आपको ध्यान रहना चाहिए। जीवन में आप कितना भी विकास कर लें, आपके शिक्षक और आपका विद्यालय आपको हमेशा याद रहना चाहिए।
___My dears. एक दिन ऐसा आएगा, जब इस स्कूल में आपका आखिरी दिन होगा। Send off day. उस दिन, जब आप इस स्कूल से विदा लें, तब यहाँ की थोड़ी सी धूल लेते जाना। घर में किसी पवित्र जगह में इसे रखना और प्रतिदिन इसके दर्शन करना। याद करना कि यह मेरी मातृसंस्था है। हमारी संस्कृति में जो महत्त्व माता का है, वही महत्त्व मातृभाषा का है, वही महत्त्व मातृभूमि का है और वही महत्त्व मातृसंस्था का है। बड़े होने के बाद आपको अपनी कमाई में से मातृसंस्था के लिए भी भाग रखना चाहिए, यहाँ आनेवाले विद्यार्थी अच्छे संस्कार प्राप्त करें, इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
3rd discipline is Social discipline. समाज में हमें एक विशिष्ट अनुशासन के साथ रहना पड़ता है, जिसे आप शिष्टता, सज्जनता या मानवता कह सकते हैं। समाज ने हमारे विकास के लिए, हमारी सुरक्षा के लिए, हमारे स्वास्थ्य के लिए, हमारी शिक्षा के लिए बहुत सारे त्याग किए हैं। जंगल में कोई समाज नहीं होता है, तो वहाँ कोई सभ्यता भी नहीं होती है। जो समाज हमें डॉक्टर, वकील, सी.ए. आदि डिग्री तक पहुचाता है, वह डिग्री प्राप्त कर उस समाज को ठगना, गलत तरीके से उसके पैसे ठगना, यह कार्य कितना खराब है!
My dears, हमारा एक दृढ़संकल्प होना चाहिए, कि मैं बड़ा होकर जो भी