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और उसके साथ रह भी नहीं सकता। तलाक ले कर वह जायेगी कहाँ ? यही बड़ा प्रश्न है। तलाक के बाद अगर हम दूसरा विवाह करते हैं, तब हमें समझौता ही करना पड़ेगा, बहुत बड़ा समझौता। इस समय इस समस्या में मैं न तो घर में शांति से रह सकता हूँ और न ही दूकान में ध्यान दे सकता हूँ। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए ?"
एक नौजवान अपने प्रेम विवाह की ट्रेजेडी ले कर मेरे पास आया था। उस की लाचारी, बेबसी और उसका दुःख देखकर मैं हिल गया। सकारात्मक ऊर्जा न तो उसके पास थी और न ही उसकी पत्नी के पास थी। पैसे दे कर नकारात्मक शक्ति ले आने की भूल वे नियमित रुप से कर रहे थे। टी.वी. विडियो, नेट, अखबार, पत्रिकाएँ, खराब मित्र मंडल. सिनेमा आदि ये सब नकारात्मक ऊर्जा के स्त्रोत हैं, जिन के कारण शरीर और मन में तरह-तरह के विकार जन्म लेते हैं। क्रोध पर काबू नहीं रहता, काम वासना भड़क उठती है, सज्जनता घटती जाती है, आशा अपेक्षाएँ बढ़ती जाती हैं. और ये सारे घटक जीवन में एक के बाद एक मुसिबतें लाते रहते हैं।
सकारात्मक ऊर्जा यानि पॉजिटिव एनर्जी सुखी जीवन का एक मात्र स्रोत है। सामायिक, पूजा, स्वाध्याय, प्रवचनश्रवण ये सारे घटक सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। इन से मन प्रफुल्लित रहता है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन से व्यवसायिक और व्यवहारिक जिम्मेदारीयों भी अच्छी तरह से निभाई जा सकती है। अगर उस युवक ने ऐसी सकारात्मक ऊर्जा वाली कन्या से विवाह का आग्रह रखा होता, तो उसकी ऐसी दशा नहीं होती।
सुख या दुःख ? पसंद आप की
Your choice "हैलो, मैं हर्षद बोल रहा हूँ। दो दिन पहले तुम्हारे घर रिश्ता ले कर आया था वो, तुम्हारा बेटा चोवियार करता है... इसलिये.. मेरी बेटी को उस के साथ ठीक नहीं रहेगा... सोरी..।"
हर्षदभाई के कुछ महीने चिंता में व्यतीत हुए। इस दरम्यान उन्होंने तीनचार लड़के देख लिये, लेकिन कहीं भी बात नहीं बनी। आखिकार एक लडका रिश्ते के लिए तैयार हो गया। उनकी बेटी को भी यह लडका बहुत अच्छा लगा। दोनो शौखीन मिजाज के थे। होटल-लारी में जाना. नई नई फिल्में देखना... वगैरह-वगैरह उन्हें पसंद था। लडकी को लगा कि यह लडका मेरे लिए एकदम सही है। इसके साथ मेरा जीवन अच्छी तरह से सुखमय व्यतीत होगा। इन दोनों का विवाह हो गया। दस दिनों के बाद बेटी का फोन आया, “पापा, मैं सुखी हूँ, बहुत ही सुखी हूँ। बस, मुझे जैसा चाहिए था वैसा ही मिला है। आप मेरी किसी तरह की चिंता न करें। वे मुझे बहुत ही अच्छी तरह से रखते हैं और इतना मजा है कि..."
सुख का सांस लेते हुए हर्षदभाई सोफे पर लंबे हो गए। चलो, बेटी ससुराल में सुखी हो तो मानो जंग जीत गए और गंगा नहा लिए। हर्षदभाई बेटी के बचपन से लेकर विवाह तक की स्मृतियों में खो गए।
" सुखं धर्मात् सुख की एकमात्र स्रोत है धर्म।
"हैलो, बेटा ! केसी हो, आनंद में ? दो महीने हो गए तुम्हारा कोई समाचार ही नहीं है।" हर्षदभाई ने सामने से फोन किया था । शादी के छ महीने बीत चुके थे और आखिर में जो फोन हुए थे उनमें बेटी ने कोई उत्साह नहीं दिखाया था। "बेटा, तेरी आवाज क्यों इतनी धीमी और अस्पष्ट है? सच बोल, क्या चल रहा है?... अरे, तू रो रही है?... क्यों?... तुझे मेरी कसम है, बौल।”
बेटी उत्तर दे पाये उस की जगह फूट-फूट कर रो पड़ी। हर्षदभाई की आँखे आप सगाई करें उससे पहले १०
Before You Get Engaged