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व जैन श्रमणों के विषय में सम्मानपूर्ण उल्लेख प्राप्त होते है । जो इस बात के सबलतम प्रमाण है, कि जैन धर्म वेदों से भी प्राचीन है । इस धर्म को वैदिक धर्म की शाखा मानना यह एक गलतफहमी है, जिस का छात्रों में प्रसार करना उचित नहीं है । हमारा तो यही कर्तव्य है की छात्रों को भारतीय संस्कृति, धर्म आदि के विषय में यथार्थ प्रामाणिक ज्ञान दे ।
★ उन्होंने वेदों को प्रमाण नहीं माना । (पृ० ३७)
चिंतन : जैन धर्म किसी का विरोध या खंडन करना नहीं चाहता, किन्तु दुसरों की दृष्टि को परखना, और उसका सम्मान के साथ समन्वय करना चाहता है। भगवान श्री महावीरस्वामी के पास इन्द्रभूति गौतम आदि ११ ब्राह्मणों ने दीक्षा ली थी । दीक्षा के पूर्व उन्होंने अपने वेदों के संशय प्रभु से पूछे थे । प्रभु ने समाधान करते हुए एक को भी ऐसा नहीं कहा कि वेद अप्रमाण है, किन्तु कहा कि - वेयपयाणमत्थं ण याणसि तेसिमो अत्थो - 'तुम वेदों के पदों के अर्थ को नहीं समजे हो, इसी लिये तुम्हें यह संशय हुआ है । मैं तुम्हे बताता हूँ, कि उनका क्या अर्थ है।' प्रभु ने प्रेम व करुणा से उनके समक्ष सम्यक् वेदार्थ का प्रतिपादन किया । वे सन्तुष्ट हुए व उन्होंने भगवान महावीरस्वामी के शिष्यत्व का स्वीकार किया ।
स्वयं सर्वज्ञ होते हुए भी भगवान श्रीमहावीरस्वामी की यह उदार दृष्टि थी । यदि जैन धर्म के प्राचीन शास्त्रों में भी सम्मान व समन्वय की ही उदार दृष्टि के दर्शन होते है, तो उक्त प्रतिपादन कैसे किया गया, यह बात समज में नहीं आ रही है।
* आदि कारण के बारे में वे या तो मौन हैं या उसके अस्तित्व से इन्कार करते हैं। (पृ० ३७)
चिंतन : बिलकुल अतिरंजितता के बिना कहूँ तो जैन धर्म में विश्वव्यवस्था, क्षेत्र, काल आदि का जो सूक्ष्मतम निरूपण किया गया है, वैसा शायद अन्य कोई भी धर्म में नहीं किया गया है । वनस्पतिसजीवता, पुद्गलपरिणति, जातिस्मरणज्ञान, अवधिज्ञान, वैक्रियलब्धि आदि अनेक जैन सिद्धान्त वैज्ञानिक परीक्षणों से प्रमाणित हो रहे है। अमरिका, केनेडा, जर्मनी, जापान आदि अनेक देशों में जैन साहित्य पर गहन संशोधन हो रहा है । इस साहित्य के अध्ययन के लिये समस्त विश्व में संस्कृत, प्राकृत व अर्धमागधी भाषाओं के छात्रों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुइ है।
जैन धर्मने 'आदि कारण' के विषय में स्पष्ट प्रतिपादन किया है - न कदाचिदनीदृशं जगत् - यह जगत अनादिकाल से ऐसा ही है। डार्विन का जो उत्क्रान्ति सिद्धान्त सालो साल पढाया जाता है, वह एक कल्पनामात्र है, जिससे अनेक उच्चतम आधुनिक विज्ञानी सहमत नहीं है। पहले मुर्गी या पहले अण्डा ? इस प्रश्न का क्या जवाब हो सकता है? यह दोनों ही अनादि परम्परा से प्रवाहित है । मुर्गी से ही अण्डा हो सकता है, न पेड से, न किसी बेक्टेरिया से । मनुष्य से ही मनुष्य हो सकता है, न ल से, न बन्दर से । फिर भले ही अरबों सालों