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उसने उन्हें समृद्ध और संतुष्ट बनाया था । ( पृ० १५)
चिंतन : भारतीय संस्कृति व रामायण आदि ग्रन्थ आस्तिकता से ही पूर्ण है व वे आस्तिकता की ही शिक्षा देते है, इसमें कोई संदेह नहीं है । आस्तिकता ही संतुष्टि व समृद्धि का मूल है, ऐसा स्वयं लेखकने स्वीकार किया है ।
सरकार यदि जनता को समृद्ध व संतुष्ट देखना चाहती है, तो रामायण, महाभारत और अन्य ग्रन्थ जिनमें संस्कृति, सदाचार, नैतिकता, अहिंसा, प्रेम, करुणा व आस्तिकता की शिक्षा हो उसका जनता में प्रसार करना चाहिये तथा इन ग्रन्थो के प्रेरक अंशो को पाठ्यपुस्तको में अधिक से अधिक स्थान देना चाहिये ।
★ अनपढ़ ग्रामीणों को सैकड़ों पद याद थे और अपनी बातचीत के दौरान वे बराबर या तो उन्हें उद्धृत करते थे या फिर किसी प्राचीन रचना में सुरक्षित किसी ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे, जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता हो । ( पृ० १५)
चिंतन : नैतिक शिक्षा देने वाले सैकड़ों पद व प्राचीन कथायें जिनकी बातचीत का हिस्सा बन गया हो, उन ग्रामीणों को शिक्षित कहा जाये ? या जिनके जीवन में नैतिकता का कोई स्थान न रहा हो ऐसे डिग्रीधारी व सत्ताधारी को ? हम शिक्षा देने पर अत्यधिक जोर देने लगे है, किन्तु शिक्षा की परिभाषा समजना उससे भी कई गुना आवश्यक है, उसे समजे बिना हम कभी 'शिक्षा' नही दे पायेंगे, ऐसा नहीं लगता ?
★ न स्वर्ग और नरक है और न ही शरीर से अलग कोई आत्मा । ( पृ० २७) चिंतन : भौतिकवाद की मान्यता यह है, ऐसा पुस्तक में कहा गया है। इस से छात्रों को क्यां शिक्षा मिलेगी ? क्यां यह अपराधों की शिक्षा नहीं है? ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् - की निम्न वृत्ति की शिक्षा नहीं है ? विश्व के बड़े बड़े मनीषी कह रहे है, कि जिसे परलोक का ड़र नहीं, उस से ड़रते रहो, यतः वह कभी भी कोई भी अपराध कर सकता है ।
क्यां ऐसा नहीं लगता, कि उक्त शिक्षा से देश में भयजनक व हानिकारक लोगों की वृद्धि होगी ?
★ वे अपने आप को अतीत की बेडियों व बोझ से मुक्त करना चाहते थे - उन तमाम बातों से जो प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देती । ( पृ० २७)
चिंतन : जिस की पवित्र छाया में भारतीय जनता हजारो साल तक संतुष्ट व समृद्धतया जीती रही, वह पावन संस्कृति, सदाचार व आस्तिकता यदि बन्धन है, तो संसार में मुक्ति जैसी कोई चीज ही नहीं रहेगी । वर्तमान भारत की सारी समस्यायें भौतिकवाद से ही पेदा हुई है । भौतिकवाद की और छात्रों को आकर्षित करना यानि उन सारी समस्याओं को बढ़ावा देना ।
हमारे दादाजी के दादाजी हमें प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देते, परन्तु हम उनका इन्कार नहीं
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