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सर्व विष व संकट निवारक त्वत्संस्तवेन भव-संतति - सन्निबद्धं पापं क्षणात्क्षयप-मुपैति शरीर-भाजाम् | आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु,
सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥7॥
7 त्वत्संस्तवेन भव सन्तति सन्निबद्धं
नौं नौ नौ नौं नौं नौं नौं
ॐ ह्रीं अर्हं णमो बीज बुद्धीणं
सुर्यांशु भिन्न मिव शार्वर मन्धकारम्।। .
नौं नौं नौं नौं नौं नौं नौं
निवारणं कुरु कुरु स्वाहा । दु
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- ॐ ही हं सं श्री श्री क्रौ क्ली सर्व 201
नौं नौं नौं नौ नौं नौं नौं
पापं क्षणात्क्षय मुपैति शरीर भाजाम्
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आक्रान्त लोक मलिनील मशेष माशु
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