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विद्या प्रदायक
अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्ति-रेव-मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चाम्र-चारु-कालिका-निकरैक-हेतु ॥6॥
6 अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास धाम्
हौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं हौं
ॐ ह्रीं अर्हं णमो कुट्ठबुद्धीणं ब्लू ब्लू ब्लू
तच्चारु चाम्रकलिका निकरैक हेतुः ।।
हौं
ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं
विद्या प्रसादं कुरु २
स्वाहा।
ब्लूब्लूब्लू ब्लूब्लूब्लूब्लूब्लू
ब्लूब्लूब्लू ब्लू ब्लू ब्लू ब्लूब्लू
ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं श्रं श्रः हं सं
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ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं ह्रौं
त्वद्भक्ति रेव मुखरी कुरुते बलान्माम् ।
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति
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