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गांधीजी इस राय के थे कि सड़कियां भी मन हो ती ब्रह्मचारिणी रह सकती हैं, पर मन में विकार का पोषण करते हुए विवाह न करने के हिमायती नहीं थे। यदि इस बात की सच्ची प्रचि हो सके कि मन की क्या स्थिति है, तो एक समस्या का हल हो सकता था । महात्मा गांधी ने एक बार कहा: "मैं इस समय तुम्हारी माँ के रूप में हूं....मैं तुम्हारे जरिये इस बात का साक्षी बनना चाहता हूं कि एक पुरुप भी मां बन कर बेटी की हर तरह की गुत्थी को मुलझा सकता है।"
२-उनकी यह धारणा थी कि यदि मनु बहन का दावा सत्य नहीं है, तो वह माँ से छिपा नहीं रह सकता। यदि कोई कमी होगी ठी वह प्रकट होकर ही रहेंगी। यदि उसमें कोई कमी नहीं होगी तो सत्य, माहम और बुद्धि में उसका क्रमशः विकास होता चला जायगा।
-माथ ही प्रासंगिक रूप से महात्मा गांधी यह भी जानना चाहते थे कि वे पूर्ण ब्रह्मचर्य की दिशा में कहाँ तक बढ़े हुए हैं । इस प्रयोग के पीछे केवल निदान की दृष्टि ही नहीं यो, पर एक दृष्टि और भी थी। योगशास्त्र में कहा है : 'पूर्ण अहिंसक के सम्मुख वर नहीं टिक सकता। इसी तरह, महात्मा गांधी की धारणा थी कि पूर्ण ब्रह्मचारी के सम्मुख विषय-विकार दूर हो जाना चाहिए।
होरेस एलेक्जेण्डर के साथ हुमा निन्न वार्तालाप उपर्युक्त बातों को स्पष्ट करता है।
महात्माजी मे उन्होंने कहा : "ब्रह्मचर्य की जाँच के लिए ऐसे अन्तिम छोर के कदम की आवश्यकता नहीं थी। यह जाँच तो अन्य तरीके भी की जा सकती थी। मोम्योन स्टाइलिट स्तंभ पर चढ़कर अपनी प्रात्म-संयम की शक्ति का प्रदर्शन किया करता था। मैंने कभी इसकी प्रशंसा नहीं की। 'सब बातों में नम्रता'-यह एक अच्छा मूत्र है।"
गांवीडी ने उत्तर में कहा-"यह ठीक है। सीम्योन स्टाइलिट वास्तव में कोई अनुकरणीय आदर्श नहीं, क्योंकि वह अहंभावी और क्रोधी था। मैंने जो यह कदम उठाया है वह यह दिखाने के लिए नहीं कि मैं क्या कर सकता हूं, वरन् यह तो पौत्री की शिक्षा की दिशा में जरूरी कदम है। यह तो मनु ने जो मुझे विश्वास दिया है, उसकी परीक्षा है और प्रानुसंगिक रूप में यह मेरी भी एक जाँच है। यदि मेरी मुच्चाई उस पर असर डाल सकी और उसमें उन खूवियों का विकास कर सकी, जिसको मैं चाहता हूं तो इससे यह प्रमाणित होगा कि मेरी सत्य की खोज सफल हुई है। तब मेरी सच्चाई मुसलमान, मुस्लिम लीग के मेरे विरोधी और जिन्ना पर भी असर डाल सकेगी जो कि मेरी मत्यता पर सन्देह करते रहे, तथा उसके द्वारा अपना तथा भारतवर्ष का नुकसान करते रहे।"
४-वे मनु बहन का एक प्रादर्श नारी के रूप में निर्माण करना चाहते थे। जब महात्मा गांधी के सामने प्रश्न पाया कि ऐसे समय में जब कि अाप ऐसे महत्त्व के काम में लगे हुए हैं, ऐसे कार्य में ध्यान कैसे दे सकते हैं ? तब उन्होंने मन बहन से है समझते हैं। उनके अज्ञान पर मुझे हसी पाती है। उनमें समझ का अभाव है। मैं तुम पर समय और शक्ति लगा रहा हूँ, वह सार्थक है। यदि भारत की करोड़ों लड़कियों में से मैं एक को भी प्रादर्श माँ बनकर, प्रादर्श स्त्री बना सकू, तो मैं स्त्री-जाति की अपूर्व सेवा कर सकंगा। पूर्ण ब्रह्मचारी होकर ही कोई स्त्रियों की सेवा कर सकता है।"
५-मनु बहन को एक बार उन्होंने कहा था : "यह न समझना कि मैंने तुम्हें यहाँ केवल अपनी सेवा के लिए ही बुलाया है। मेरी सेवा तो तुम करोगी ही। परन्तु जहाँ छोटी-सी लड़की या वृद्ध स्त्री भी सुरक्षित नहीं, वहाँ तुम्हें १६-१७ वर्ष की जवान लड़की को, मैंने अपने पास रखा है। यदि कोई नौ गुण्डा तुम्हें तंग करे और तुम उसका सामना बहादुरी के साथ कर सको अथवा सामना करते-करते मर जावो तो मैं खुशी से नाचूगा। तुम्हें बुलाने में यह भी एक प्रयोग है Tim
e s 1-Mahatma Gandhi-The Last Phase Vol. I, pp. 575-76 २-अकला चलो रे पृ०२३ ३-Mahatma Gandhi-The Last Phase Vol. I, P. 576 ४-वही पृ० ५७६
-वही पृ०५७७ -वही पृ०५८० -वही पृ० १७८ ८-कला चलो रे पृ०११
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