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भूमिका
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१७-ब्रह्मचर्य की बाड़ें । ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपायों को पागम में गुप्तियाँ अथवा समाधि के स्थान कहा गया है। इन्हें साधारणत: ब्रह्मचर्य की बाड़ें भी कहा जाता है। इन उपायों की संख्या श्वेताम्बर प्रागमों में नौ अथवा दस दोनों ही प्राप्त है। स्थानाङ्ग के अनुसार ये नियम इस प्रकार हैं:
१- ब्रह्मचारी विविक्त शयनासन का सेवन करनेवाला हो। स्त्री-पशु-नपुंसक से संसक्त स्थान में न रहे। २-स्त्री-कथा न कहे।' ३-स्त्री के साथ एक प्रासन पर न बैठे।
_स्त्रियों की मनोहर डलियों का अवलोकन न करे ५-सरस अाहार का भोजन न करे। ६-जल-भोजन का अतिमात्रा में सेवन न करे।
७-पूर्व क्रीड़ा का स्मरण न करे। 'वह शब्दानपाती. रूपानपाती और इलोकानपाती न हो।
-सात और सुख में प्रतिबद्ध न हो। उत्तराध्ययन और दशवकालिक के अनसार उनका स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार है :
१-ब्रह्मचारी स्त्री-पश-नपंसक सहित मकान का सेवन न करे।
१०.
वह शब्दान
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arth.१ ब्रह्मचारी स्त्री-पशु-पुत
२--स्त्री-कथा न कहे।
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३-स्त्री-सहित प्रासन अथवा शय्या पर न बैठे। ४--स्त्री की मनोहर इन्द्रियों पर दृष्टिपात न करे।
श्री के हास्य. विलास प्रादि के शब्दों को न सने। -पूर्व क्रीड़ानों का स्मरण न करे। .REEN '७-सरस पाहार का भोजन न करे। ८-अति मात्रा में जल-भोजन का सेवन न करे।
१०-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्शानुपाती न हो। प्रथम निरूपण में स्त्री के हास्य, विलास, कूजन आदि को न सुनने रूप पांचवें समाधि-स्थान का उल्लेख नहीं है। दिगम्बर विद्वान् पण्डित पाशाघरजी ने ब्रह्मचर्य के दस नियमों को निम्न रूप में उपस्थित किया
१-मा स्पादिरसं पिपास सुदृशां-ब्रह्मचारी रूप, रस, गन्ध, स्पर्श तथा शब्द के रसों को पान करने की इच्छा न करे। २-वस्ति मोक्ष' मा कृथा—वह ऐसे कार्य न करे जिससे लिंग-विकार होने की सम्भावना हो। ३-वृष्यं मा भज-ब्रह्मचारी वृष्य-माहार-कामोद्दीपक आहार का सेवन न करे। ४-स्त्री शयनादिकं च मा भज-स्त्रियों से सेवित शयन, असनादि का उपयोग न करे।
pm ५-वराङ्ग दृशं मा दा-स्त्रियों के मङ्गों को न देखे। ६-स्त्री मा सत्कुरु-स्त्री का सत्कार न करे। ७-मा च संस्कुरु-शरीर-संस्कार न करे।
१-देखिए पृ० १२१,१२६ २-वही ३-अनगारधर्मामृतम् ४.६१
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