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शील की नव-बाड़
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: (ख) जैन-स्तुति ब्रह्मचारी और ब्रह्मचर्य की महिमा का बड़ा हृदय-ग्राहक वर्णन जैनागम "प्रश्न व्याकरण" में भी है। वहाँ ब्रह्मचर्य को ३२ उपमाओं से उपमित किया गया है और उसे सब व्रतों में उत्तम कहा गया है। यह अंश पृ०७ पर दिया गया है । इसके अतिरिक्त भी उस पागम में ब्रह्मचर्य का बड़ा सुन्दर गुण-वर्णन है । इसका कुछ अंश उद्धृत किया जा चुका है (देखिए पृ० ६ टि०३).। यहाँ पूरा अवतरण दिया जाता है :
7 "ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व तथा विनय का मूल है । यम और नियम रूप प्रधान गुणों से युक्त है। हिमवान् पर्वत से महान् और तेजस्वी है। ..
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ore " : "ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान करने से मनुष्य का अन्त:करण प्रशस्त, गम्भीर और स्थिर हो जाता है |
"ब्रह्मचर्य सरल साधुजनों द्वारा प्राचरित है, मोक्ष का मार्ग है, निर्मल सिद्ध-गति का स्थान है। __"यह शाश्वत, अव्याबाध और पुनर्भव को रोकनेवाला है। यह प्रशस्त, सौम्य, शुभ और शिव है। यह अचल है, अक्षयकारी है, यतिवरों द्वारा सुरक्षित है, सु-पाचरित एवं सुभाषित है। D
i ctio nary . "मुनिवरों ने, महापुरुषों ने, धीर वीरों ने, धर्मात्मानों ने, धृतिमानों ने ब्रह्मचर्य का सदा पालन किया है। यह भध्य है। भव्यजनों ने इसका आचरण किया है। 2017
2 "यह शंका रहित है, भय रहित है, तुप रहित है, खेद के कारणों से रहित है, निर्लेप है।, RT
. "यह समाधि का घर है, निश्चल नियम है, तप-संयम का तना है; पाँचों महाव्रतों में अत्यन्त सुरक्ष्य है। समिति गुप्ति से युक्त है। उतमध्यान की रक्षा के लिए उत्तम कपाटों के समान है, शुभ ध्यान की रक्षा के लिए अगला के समान है। दुर्गति के मार्ग को रोकने तथा पाच्छादित करनेवाला है, सद्गति का पथ प्रदर्शक है और लोक में उत्तम है।
मई "यह व्रत पद्मसरोवर और तालाब की पाल के समान है। महा शकट के पारों की नाभि के समान है। अत्यन्त विस्तारवाले वृक्ष के स्कंध के समान है। किसी विशाल नगर के प्राकार के किवाड़ों की अर्गला के समान है। रस्सी से बंधे हुए इन्द्रध्वजा के समान है। तथा अनेक विशद्ध गुणों से युक्त है।
"ब्रह्मचर्य का भङ्ग होने पर सहसा सभी व्रतों का तत्काल भंग हो जाता है। सभी व्रत, विनय, शील, तप, नियम, गुण.आदि दही के समान मथित हो जाते हैं, चूर-चूर हो जाते हैं। बाधित हो जाते हैं, पर्वत के शिखर से गिरे हुए पत्थर के समान भ्रष्ट हो जाते हैं, खण्डित हो जाते हैं, उनका विध्वंस हो जाता है, विनाश हो जाता है।
sagar म "ब्रह्मचर्य पांच महाव्रतों का मूल है, कषाय रहित साघुजनों ने भावपूर्वक इसका आचरण किया है.। बैर की शान्ति ब्रह्मचर्य का फल है। महा समुद्र के समान संसार से पार होने के लिए घाट रूप है।
"तीर्थङ्करों द्वारा सम्यक् प्रकार से प्रदर्शित मार्ग है । नरक गति और तिर्यञ्च गति से बचने का मार्ग है, समस्त पावन वस्तुओं का सार है। मोक्ष और स्वर्ग का द्वार खोलनेवाला है। ... "ब्रह्मचर्य देवेन्द्र और नरेन्द्रों के नमस्यों का भी नमस्य है । समस्त संसार में उत्तम मङ्गलों का मार्ग है । उसको कोई अभिभव नहीं कर सकता, वह श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति का अद्वितीय साधन है और मोक्ष मार्ग के हेतुओं में शिरोमणि है।
"ब्रह्मचर्य का निरतिचार पालन करनेवाला ही सुब्राह्मण है, सुश्रमण, सुसाधु है । जो ब्रह्मचर्य का शुद्ध रूप से पालन करता है वही ऋषि ... है, वही मुनि है, वही संयमी और वही भिक्षु है।
"यह परलोक में हितकारी है, आगामी काल में कल्याणकारी है, निर्मल है, न्याययुक्त हैं, सरल है, श्रेष्ठ है, समस्त दुःखों और पापों का शान्त करनेवाला है।"
अथर्ववेद के सूक्त में वेदाध्ययन रूप ब्रह्मचर्य और वेदाभ्यासी ब्रह्मचारी की महिमा है और जैन आगम में संयम रूप ब्रह्मचर्य और उसके पालन करनेवाले ब्रह्मचारी की महिमा ।
पहली स्तुति जटिल और दुरूह है और यदि वह वास्तव में ब्रह्मचर्य और ब्रह्मचारी की स्तुति है तो अतिरंजित और जीवन की वास्तविकता है। से खब सम्बन्ध रखनेवाली नहीं है। दूसरी स्तुति अनुभव की वाणी हैं और उसमें बताये ब्रह्मचर्य का स्थान और उसकी महिमा जग विदित और सर्वमान्य है।
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१-प्रभव्याकरण २.४
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