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३-ढाल ३ ( दुहा २ : गाथा १४ ) : दूजी बाड़
दूसरी बाड़ का स्वरूप : ब्रह्मचारी नारी-कथा न कहे (दोहा १); ब्रह्मचारी को नारी-कथा क्यों नहीं शोभा देती ? (दो० २) ;
जो बार-बार नारी कथा करता है, उसका ब्रह्मचर्य कैसे टिक सकता है ? (गाथा १ ) ;
नारी का कैसा वर्णन नहीं करना चाहिए (गा० २-४ ) ; अपवादिक यथातथ्य कथन में दोष नहीं ( गा० ५ ) ; नारी रूप के वखाण से विषय विकार की वृद्धि (गा० ६) ; छह राजा और मल्लिकुमारी ( गा० ७) ;
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चंदप्रद्योत और मृगावती की कथा (गा० ८-९) नंदान पद्मोतर और द्रोपदी की कथा ( गा० १० ) ;
नारी-कथा श्रवण से अनेक लोगों के भ्रष्ट होने का कथन ( गा० ११) my in the toge
नारी कथा श्रवण पर नींबू फल का दृष्टान्त ( गा० १२ ) ;
स्त्री-कथा श्रवण से शंका, कांक्षा, विचिकित्सा की संभावना ( गा० १३ ) ;
दूसरी बाड़ के शुद्ध रूप से पालन करने का परिणाम ( गा० १४ ) ।
टिप्पणियाँ
४–ढाल ४ (दुहा ४ : गाथा १४) : तीजी बाड़ क तीसरी बाड़ में एक शय्या पर बैठने का निषेध (दोहा १ ) ;
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..अन और घृतकुंभ के दृष्टान्त द्वारा एक शय्या पर बैठने के दुष्परिणाम का उल्लेख उल्लेख (दो० २-३) ;
अग्नि और लोह का दृष्टान्त (दो० ४ ) ;
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• एकासन पर बैठने से कामोद्दीपन की संभावना ( गा०. १)
एकासन पर बैठने से संसर्ग, फिर स्पर्श, फिर रस-जागृति, फिर व्रत-भंग (गा० २) आसन के भेद ( गा० ३) ;
एक शय्या पर बैठने से शंका, मिथ्या कलंक, मिथ्या प्रचार के भय ( गा० ४) ;
जिस स्थान से स्त्री तुरंत उठी हो, उसपर एक मुहूर्त के पहले बैठने का ब्रह्मचारी को निषेध ( गा० ५) नारी-वेद के पुद्गलों से पुरुष-वेद-विकार (गा०.६)
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वेदानुभव से भोगानुराग होता है अतः ब्रह्मचारी के लिए स्त्री-स्पर्श निषेध ( गा० ७)
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संभूति मुनि की कथा ( गा० ८-९ ) ;
नारी-स्पर्श से शंका, कांक्षा तथा विचिकित्सा की उत्पत्ति (गा०
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तीसरी बाड़ के खंडन से ब्रह्मचर्य की हानि : नरक गति तथा भव-भ्रमण ( गा० ११ ) ; काचर और कोहल के दृष्टान्त द्वारा एक आसन पर बैठने से मन के चलित होने का कथन ( गा०१२ ) ; . माता, बहिन या बेटी के भी साथ एक आसन पर बैठने का निषेध ( गा० १३ ) ;
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उपसंहार ( गा० १४ )
टिप्पणियाँ
५--ढाल ५ (दुहा २ : गाथा २१) चौथी बाड़
चौथी बाड़ में नारी के रूपादि के निरीक्षण करने का निषेध (दोहा १) ; 'दशवैकालिक सूत्र' के आधार पर चित्रांकित पुतली के अवलोकन का भी निषेध (दो० २) ;
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