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________________ राजर्षि शैलक । [इसका सम्वन्ध दाल ७ गाथा ११ (पृ० ४७ ) के साथ है ] - उस समय शेलकपुर नाम का एक नगर था। वहां शैलक नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पद्मावती और पुत्र का नाम मण्डूक था। उसके पंथक आदि पांच सौ मंत्री थे। वे चारों बुद्धि के निधान एवं राज्यधुरा के चिन्तक थे। एक समय थावच्चा अनगार एक सहस्र शिष्य परिवार के साथ नगर के बाहर सुभूमिभाग उद्यान में पधारे। जनता दर्शन करने को गई। महाराजा शैलक भी अपने पांच सौ मन्त्रियों के साथ दर्शन करने गया। अनगार का उपदेश सुन उसने पांच सौ मंत्रियों के साथ श्रावक के बारह व्रत प्रहण किये। थावच्चा अनगार ने वहां से बाहर जनपद में विहार कर दिया। किसी समय थावच्चा अनगार के शिष्य शुक अनगार अपने सहस्र शिष्य परिवार के साथ शैलकपुर नगर पधारे। महाराजा शैलक भी मन्त्रियों के साथ उनका उपदेश सुनने गया। उपदेश सुनने के बाद शैलक महाराजा शुक अनगार से बोला- भगवन् ! मैं अपने पुत्र मण्डूक को राज्यगद्दी पर स्थापित कर आप के पास प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूं।" अनगार बोले-"राजन् ! तुम्हें जैसे सुख हो वैसा करो।” महाराजा घर आया और पांच सौ मंत्रियों को बुला प्रव्रज्या ग्रहण करने की इच्छा प्रगट की। मंत्रियों ने भी महाराजा शैलक के साथ दीक्षा लेने का निश्चय प्रकट किया। पश्चात् महाराजा शैलक ने अपने पुत्र को राजगद्दी पर स्थापित कर पांच सौ मंत्रियों के साथ शुक अनगार के पास दीक्षा ग्रहण की। शैलक राजर्षि ने सामायिकादि अंग उपांगों का अध्ययन किया। शुक अनगार ने पांच सौ अनगारों को उन्हें शिष्य के रूप में दे उन्हें स्वतंत्र विहार करने की आज्ञा दी। शैलक राजर्षि पंथक आदि पांच सौ अनगारों के साथ प्रामानुग्राम विचरने लगे। शैलक राजर्षि अंत, प्रांत, तुच्छ, लुक्ष, अरस, विरस, शीत, उष्ण, कालातिक्रान्त, प्रमाणातिक्रान्त आहार का नित्य सेवन करते। प्रकृति से सुकोमल एवं सुखोपचित होने के कारण ऐसे आहार से उनके शरीर में उज्वल, असह्य वेदना उत्पन्न करने वाले पित्तदाह, कण्डु-खुजली, ज्वर जैसे रोगातक उत्पन्न हो गये। इससे उनका शरीर सूख गया। वे प्रामानुप्राम विचरण करते शैलकपुर नगर के बाहर सुभूमिभाग उद्यान में पधारे। महाराजा मण्डक भी अनगार के दर्शन करने के लिए उद्यान में गया। वहां उन्हें वन्दना कर उनकी पर्युपासना करने लगा। मण्डूक महाराज ने शैलक अनगार के शरीर को अत्यन्त सूखा हुआ एवं रोग से पीड़ित देखा। यह देखकर वह बोला- भगवन् ! मैं आप के शरीर को सरोग देख रहा हूँ। आपका सारा शरीर सूख गया है, अतः मैं आपकी, योग्य चिकित्सकों से, साधु के योग्य औषध भेषज तथा उचित खान-पान द्वारा, चिकित्सा करवाना चाहता हूं। आप मेरी यानशाला में पधारें। वहाँ प्रासुक-एषणीय पीठ, फलक, शैय्या, संस्तारक ग्रहण कर ठहरें। राजर्षि ने राजा की प्रार्थना स्वीकार की और दूसरे दिन प्रातः पांच सौ अनगारों के समूह के साथ राजा की यान-शाला में पधारे। वहां यथायोग्य एषणीय पीठ, फलक आदि को ग्रहण कर रहने लगे। राजा मण्डूक ने चिकित्सकों को बुलाकर शैलक राजर्षि की चिकित्सा करने की आज्ञा दी। चिकित्सकों ने विविध प्रकार की चिकित्सा की। चिकित्सा और अच्छे खान-पान से उनका रोग शान्त हुआ और शरीर पुनः हट-पुष्ट हो गया। -भातासूत्र अ०५के आधार पर Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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