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-शील की नयवाद
शंख राजा बोला "मल्लिकुमारी कैसी है ?" स्वर्णकारों ने कहा “स्वामी! दूसरी ऐसी कोई देवकन्या या नाग कन्या भी नहीं जो मल्लिकुमारी के रूप की बराबरी कर सके।" महाराज शंख मल्लि कुमारी के प्रति आसक्त हो गया। उसने अपने दूत को बुलाकर कहा – “तुम शीघ्र ही मिथिला पहुँच कर मेरी भार्या के रूप में मल्लि कुमारी की माँग करो। अगर इसके लिए राज्य भी देना पड़े तो भी मेरी ओर से स्वीकार करना ।"
६.२
महाराजा की आज्ञा पाकर दूत ने मिथिला की ओर प्रस्थान किया । मिथिला के कुम्भ राजा का पुत्र मल्लदिन्न था। उसने अपने उद्यान में एक सभा भवन का निर्माण कराया। एक बार नगर के समस्त चित्रकारों को बुलाकर उसने अपने सभा भवन को चित्रित करने की आज्ञा दी । चित्रकारों ने राजकुमार की आज्ञा शिरोधार्य कर काम शुरू किया। उन चित्रकारों में एक चित्रकार को ऐसी छब्धि थी कि वह किसी भी पदार्थ का एक भाग देखकर उस सम्पूर्ण पदार्थ का यथावत् चित्र अंकित कर सकता था ।
एक दिन उस चित्रकार ने पर्दे के छिद्र से मल्लिकुमारी का अंगूठा देखकर विचार किया - "मुझे इसका सम्पूर्ण चित्र बना लेना चाहिए।" ऐसा सोचकर उसने मल्लिकुमारी का यथायथ चित्र बना डाला।
उसके बाद चित्रकारों ने भावभंगिमापूर्ण अनेक सुन्दर चित्रों से सभा भवन को चित्रित किया और बुबराज की आज्ञा पूरी कर दी ।
युवराज ने चित्रकारों का खूब सत्कार-सम्मान किया तथा जीविका के योग्य प्रीतिदान देकर उन्हें विदा किया।
मल्छदिन्न कुमार स्नान कर वस्त्राभूषण से सुसज्जित हो, धायमाता के साथ चित्रशाला में आया और यहाँ अनेक हाव-भाव वाली स्त्रियों के चित्रों को देखने लगा। चित्र देखते-देखते अकस्मात् उसकी दृष्टि मल्लि कुमारो के चित्रपर पड़ी। चित्र को ही साक्षात् मल्लि कुमारी समझकर वह लज्जित हुआ और धीरे-धीरे पीछे हटने लगा। यह देखकर उसकी भावमाता कहने लगी- “पुत्र तुम लज्जित होकर पीछे क्यों सरकने लगे हो ?” मल्लदिन्न ने धात्रीमाता से कहा“हे माता ! मेरी बड़ी बहन, जो देव, गुरु के समान है उससे लज्जित होना ही चाहिए। उसके रहते हुए चित्रशाला में प्रवेश करना क्या मेरे लिए योग्य है ?” तब धायमाता ने कहा “पुत्र ! यह मल्लिकुमारी नहीं बल्कि उसका चित्र है ।" यह सुनकर राजकुमार कुपित हो बोला- “ कौन ऐसा अप्रार्थित का प्रार्थी एवं लज्जारहित चित्रकार है, जिसने मेरी देव गुरु तुल्य ज्येष्ठ भगिनी का चित्र बनाया " ऐसा कहकर उसने चित्रकार के वध की आज्ञा दे दी।
जब चित्रकारों को यह मालूम हुआ तो उन्होंने राजकुमार से बहुत अनुनय-विनय किया और चित्रकार का वध न करने की प्रार्थना की। चित्रकारों की प्रार्थना पर राजकुमार ने चित्रकार के वध के बदले उस की दो अंगुष्ठ एवं कनिष्ठ अंगुली को छेदने और निर्वासन की आज्ञा दे दी ।
चित्रकार मिथिला से निर्वासित होकर हस्तिनापुर गया। वहाँ उसने मल्लिकुमारी का एक चित्र बनाया और उस चित्रपट को साथ में लेकर महाराजा अदीनशत्रु के पास आ, अभिवादन कर, बहुमूल्य उपहार के साथ वह चित्रपट उन्हें भेंट किया। फिर बोला- “स्वामी ! मिथिला नरेश ने अपने देश से मुझे निष्कासित कर दिया है। मैं आपकी छाया में सुखपूर्वक रहना चाहता हूँ।"
महाराज ने पूछा - "तुझे मिथिला नरेश ने देश निकाले की आज्ञा क्यों दी ?” चित्रकार ने घटना का समस्त वृतान्त सुनाया। घटना सुनकर महाराज ने पूछा - "वह मल्लिकुमारी कैसी है तब उसने चित्रपट दिखाते हुए मल्लि कुमारी के रूप की अतीष प्रशंसा की। मल्लिकुमारी के रूप की प्रशंसा सुनकर महाराज मुग्ध हो गये और उन्होंने अपने दूत को बुलाकर आज्ञा दी "तुम मिथिला नगरी जाओ और भार्या के रूप में मल्लिकुमारी की मंगनी करो।"
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